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Sadho Ye Utsav Ka Gaon   

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Author Ratnakar Chaubey , Ajay Singh , Abhishek Upadhyay
Features
  • ISBN : 9789353227159
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ratnakar Chaubey , Ajay Singh , Abhishek Upadhyay
  • 9789353227159
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2020
  • 272
  • Hard Cover

Description

काशी की यात्रा का अर्थ है, काशी को समझना, बूझना, थोड़ा गहरे उतरना और इसके परिचय के महासागर में अपने स्व के निर्झर का विसर्जन कर देना। सो कुछ बनारसी ठलुओं ने एक दिन अपनी अड़ी पर यही तय किया। व्यक्ति, समाज, धर्म, संस्कृति और काशी के अबूझ रहस्यों को जानने के लिए क्यों न पंचक्रोशी यात्रा की जाए? पंचकोशी यानी काशी की पौराणिक सीमा की परिक्रमा। सो ठलुओं ने परिधि से केंद्र की यह यात्रा शुरू कर दी।
यात्रा अनूठी रही। इस यात्रा में हमने खुद को ढूँढ़ा। जगत् को समझा। काशी की महान् विरासत को श्रद्धा और आश्चर्य की नजरों से देखा। अंतर्मन से समृद्ध हुए। जीवन को समृद्ध किया। दिनोदिन व्यक्तिपरक होती जा रही इस दुनिया में सामूहिकता के स्वर्ग तलाशे। कुछ विकल्प सोचे। कुछ संकल्प लिये। खँडहर होते अतीत के स्मारकों के नवनिर्माण की मुहिम छेड़ी। यात्रा के प्राप्य ने हमारी चेतना की जमीन उर्वर कर दी।
जब यात्रा पूरी हुई तो ठलुओं ने तय किया कि क्यों न इस यात्रा के अनुभव और वृत्तांत को मनुष्यता के हवाले कर दिया जाए! फिर आनन-फानन में इस पुस्तक की योजना बनी। यात्रा के दौरान दिमाग के पन्नों पर जो अनुभूतियाँ दर्ज हुईं, ठलुओं ने उन्हें इतिहास के सरकंडे से वर्तमान के कागज पर उतारा और यह किताब बन गई।
हमने पंचक्रोशी यात्रा में काशी को उसी तरह ढूँढ़ा, जिस तरह कभी वास्को डि गामा आज से करीब पाँच सौ साल पहले पुर्तगाल के इतिहास की धूल उड़ाती गलियों से निकलकर भारत को तलाशता हुआ कालीकट के तट पर पहुँचा था। वह जिस तरह से अबूझ भारत को बूझने के लिए बेचैन था, कुछ वैसे ही हम काशी को जानने-समझने की खातिर बेचैन थे। एक बड़ा विभाजनकारी फर्क भी था। वास्को डि गामा मुनाफे के लिए आया था, हम मुनाफा पीछे छोड़ आए थे। घर, गृहस्थी, कारोबार, भौतिक जीवन की तमाम चिंताएँ...सबकुछ। हमें अपने भौतिक जीवन के लिए कुछ हासिल नहीं करना था। हमें बस काशी को जानने-समझने के सनातन जुनून का हिस्सा बनना था। हम अपने जीवन को इस संतोष से ओत-प्रोत करना चाहते थे कि हमने इसका कुछ हिस्सा केवल और केवल काशी को दिया। काशी को समझा। काशी को जाना। एक महान् विरासत से जुड़े; एक महान् विरासत के हो गए।

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देखी तुमरी कासी... अभिषेक उपाध्याय —Pgs. 7

चरैवे‌ति...चरैवे‌ति हेमंत शर्मा —Pgs. 11

आभार अभिषेक उपाध्याय, अजय सिंह, रत्नाकर चौबे —Pgs. 23

1. क्या है पंचक्रोश? —शरद शर्मा —Pgs. 31

2. यात्रा ही सत्य है! शिव है! सुंदर है! —मुनीश मिश्रा —Pgs. 39

3. पंचक्रोशीय यात्रा-वृत्तांत—पहला दिन —अभिषेक उपाध्याय व रत्नाकर चौबे —Pgs. 49

4. पंचक्रोशीय यात्रा-वृत्तांत—दूसरा दिन —अभिषेक उपाध्याय व रत्नाकर चौबे —Pgs. 63

5. पंचक्रोशीय यात्रा-वृत्तांत—तीसरा दिन —अभिषेक उपाध्याय व रत्नाकर चौबे —Pgs. 71

6. एक विरासत के नाम —हेमंत शर्मा —Pgs. 83

7. पंचक्रोशी मंदिर यात्रा —अनुराग कुशवाहा —Pgs. 91

8. डॉक्टर मेरे खिलाफ थे, पर शिव मेरे साथ थे —मंगल प्रसाद यादव  —Pgs. 99

9. ...पर मन तो यात्रा के ही साथ रहा —ब्रजेश पाठक —Pgs. 103

10. मन झय्यम, झय्यम, झम्म हो गया! —कुंदन यादव —Pgs. 107

11. ढूढँता था दिल जिसे —प्रो. अरुण कुमार —Pgs. 119

12. व्हाट्सएप पर लाइव टेलीकास्ट हो रहा था  पर मैं बेबस था...! —दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’ —Pgs. 127

13. भाँग खाई, पंचक्रोश नापे, हर-हर, बम-बम —राजेंद्र कुमार —Pgs. 133

14. ये राजसूय यात्रा सी चुनौती थी —कमलेश चौबे ‘डब्लू’ —Pgs. 141

15. सब पंचक्रोश की माया भाई, मात्रा पाई ठीक कराई —प्रो. कैलाश नाथ तिवारी —Pgs. 149

16. ल रजा! पढ़ ला, पंचक्रोश क बायॉडाटा निकाल देहली! —रत्नाकर चौबे —Pgs. 153

17. नहीं भूलता, पंचक्रोश यात्रा में मुसलिम भाइयों का वो स्वागत —अजय सिंह —Pgs. 159

18. 55 साल से काशी में हूँ, अब जाकर देखी काशी! —नागेंद्र द्विवेदी —Pgs. 165

19. 70 दिन की तपस्या से मिले पंचक्रोशी के तीन दिन! —शिवेंद्र कुमार सिंह —Pgs. 169

20. जब बाहुबली ने पहली बार देखी माहिष्मती —विनय राय ‘बब्बू बाहुबली’ —Pgs. 177

21. मुझ जैसा मोटा आदमी भी इतना पैदल कैसे चल गया! —दीपांकर पांडेय —Pgs. 185

22. लोग घंटा बजा रहे थे, मैं घंटा बचा रहा था —राजीव ओझा —Pgs. 189

23. जब जरी का देश छोड़कर मैं कोलंबस बन गया! —कौटिल्य जायसवाल —Pgs. 195

24. अबकी अयोध्या, अगली बार काशी! —योगेश सिंह —Pgs. 199

25. आह! बनारस, वाह! बनारस —आशीष पटेल —Pgs. 203

26. फिर लौट आया बिसरा वक्त! —विक्रांत दूबे —Pgs. 207

27. चला रहा था कैमरा, कैद हो रहा था समय —मनीष खत्री —Pgs. 213

28. वे कालनेमि, जो यात्रा की हवा निकालने की तैयारी में थे —अजय सिंह —Pgs. 219

29. चूड़ा-मटर, आलूदम भिड़इली, फिर माथा नवइली —बदरी विशाल —Pgs. 231

30. काहे का अफसोस! —नरेंद्र देव आनंद —Pgs. 241

31. ठलुओं की अड़ी ही भारत की आत्मा है —अशोक पांडेय —Pgs. 245

32. और वक्त ने मुझे सही साबित किया... —अजय त्रिवेदी —Pgs. 249

33. पंचक्रोश की तीसरी आँख —यशवंत देशमुख —Pgs. 253

34. एक पन्ना मेरी विनम्र भावांजलि का —आलोक श्रीवास्तव —Pgs. 259

35. एक तमाशा तय्यत ताशा...  —Pgs. 263

The Author

Ratnakar Chaubey
Ajay Singh
Abhishek Upadhyay

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