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Rahasyopadesh Ka Rahasya   

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Author Satish Dhar
Features
  • ISBN : 9789352668373
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
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  • Kindle Store

More Information

  • Satish Dhar
  • 9789352668373
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 200
  • Hard Cover

Description

कश्मीर की आदिकवयित्री शैवयोगिनी माता लल्लेश्वरी को परमगुरु मानकर उन्हें ओंकार की भाँति हृदय में स्थापित करनेवाली, अपने गुरु और पिता पंडित माधव जू धर को शिवस्वरूप माननेवाली माताश्री रूपभवानी वे शक्तिरूपा हैं, जिन्होंने कश्मीर की उस आध्यात्मिक परंपरा को परिपुष्ट किया, जो भारत की सभ्यता का अविच्छिन्न अंग है। यह पुस्तक इसी दार्शनिक स्वरूप और उसकी दिशा को रेखांकित करती है।
माता रूपभवानी ने शस्त्र और शास्त्र की सार्थकता पर जो चिंतन किया है, उसे उनके ‘वाखों’ में अभिव्यक्ति मिली है। ये दोनों ही अंदर के खालीपन को भरने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन उस परब्रह्म की सत्ता का बोध हो तो फिर न शस्त्र की आवश्यकता रहती है, न शास्त्र की। 
कश्मीर की समृद्ध संत-परंपरा के गौरवमयी इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है माता श्रीरूपभवानी का अवतरण। इस महान् तपस्विनी ने विभिन्न स्थलों पर 50 वर्ष तक तपस्या के पश्चात् अपने भक्तों को निर्वाण का रहस्य अपने उपदेशों के माध्यम से समझाया। ये उपदेश साधना की राह में आगे बढ़ने के लिए आज भी साधक को निरंतर प्रेरित करते हैं।
आशा है, माता श्रीरूपभवानी के उपदेशों को समझने और उनका अनुसरण करने की दिशा में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।
—डॉ. दिलीप कौल

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अनुक्रम

प्राक्कथन — 7

माता श्रीरूपभवानी का चमत्कारिक अवतरण — 9

1. माता श्रीरूपभवानी की पवित्र वाणी : रहस्योपदेश — 15

2. माता श्रीरूपभवानी के वाखों में प्रतीक  — 23

3. निर्वाण और परमगति — 30

4. ज्ञान-खंड — 40

5. स्वानुभवोल्लासदशकम और माता श्रीरूपभवानी — 70

6. ‘स्वानुभवोल्लासदशकम’ के श्लोकों का सार — 77

7. आनंद-द्वादशी : परमात्मा से एकीकरण का उपदेश — 82

8. पंडित बालह धर का फारसी पत्र — 87

9. साधना में अनुग्रह का भाव — 100

10. साधना का महत्त्वपूर्ण सोपान : दृष्टाभाव  — 107

11. अपार ज्ञान का भंडार हैं वाख — 111

12.  वाखों में प्रयुक्त शब्दों की व्याख्या — 114

13. माता श्रीरूपभवानी के वाखों में पाठ-भेद  — 132

14. माता श्रीरूपभवानी के वाखों में शैव-दर्शन  — 144

15. कुंडलिनी शक्ति और माता श्रीरूपभवानी — 152

16. माता श्रीरूपभवानी का दरबार सम धर्म समभाव का विलक्षण स्थल — 156

17. माता श्रीरूपभवानी और लल्‍लेश्वरी — 160

18. साधना में विवेक का महत्त्व  — 164

19. शाह कलंदर और माता श्रीरूपभवानी — 166

20. माता श्रीरूपभवानी का योगिनी रूप — 169

21. यह गीता-ज्ञान ही तो है... 171

22. माता श्रीरूपभवानी का रहस्यवाद — 177

23. माता श्रीरूपभवानी के उपदेशों में कर्म की व्याख्या — 186

24. यज्ञ का महत्त्व और माता श्रीरूपभवानी का उपदेश — 191

25. अंतर्मुखी दृष्टि अर्थात् परमार्थ पथ की ओर एक कदम  — 196

 

The Author

Satish Dhar

सतीश धर
23 अगस्त, 1951 को श्रीनगर (कश्मीर) में जन्म। प्रारंभिक शिक्षा हिमाचल में। हिमाचल प्रदेश के  सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में नौकरी की; उपनिदेशक के पद से सेवानिवृत्ति। मूलतः कवि—तीन काव्य-संग्रह, ‘कल की बात’, ‘सलमा खातून नदी बन गई’ और ‘प्रथम पंक्ति के लोग’ प्रकाशित। वर्ष 2000 में माता श्री रूपभवानी के वाखों के अनुवाद और कश्मीर के धर पंडितों की वंशावली पर आधारित पुस्तक ‘कौन जाने तेरा स्वभाव’ श्री अलखसाहिबा ट्रस्ट, जम्मू द्वारा प्रकाशित।

 

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