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Prithvi-Putra   

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Author Dr. Vasudeva Sharan Agrawala
Features
  • ISBN : 9789352664450
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Dr. Vasudeva Sharan Agrawala
  • 9789352664450
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2018
  • 288
  • Hard Cover

Description

‘पृथिवी-पुत्र’ डॉ. वासुदेवशरण  अग्रवाल द्वारा समय-समय पर लिखे गए उन लेखों और पत्रों का संग्रह है, जिनमें जनपदीय दृष्टिकोण से साहित्य और जीवन के सम्बन्ध में कुछ विचार प्रकट किए गए थे। इस दृष्टिकोण की मूल प्रेरणा पृथिवी या मातृभूमि के साथ जीवन के सभी सूत्रों को मिला देने से उत्पन्न होती है। ‘पृथिवी-पुत्र’ का मार्ग साहित्यिक कुतूहल नहीं है, यह जीवन का धर्म है। जीवन की आवश्यकताओं के भीतर से ‘पृथिवी-पुत्र’ भावना का जन्म होता है। ‘पृथिवी-पुत्र’ धर्म में इसी कारण प्रबल आध्यात्मिक स्फूर्ति छिपी हुई है। ‘पृथिवी-पुत्र’ दृष्टिकोण हमारे राष्ट्रीय अस्तित्व और विकास की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के साथ हमारा परिचय कराता है। 
पृथिवी को मातृभूमि और अपने आपको उसका पुत्र समझने का अर्थ बहुत गहरा है। यह एक दीक्षा है, जिससे नया मन प्राप्त होता है। पृथिवी-पुत्र का मन मानव के लिए ही नहीं, पृथिवी से सम्बन्धित छोटे-से तृण के लिए भी प्रेम से खुल जाता है। पृथिवी-पुत्र की भावना मन को उदार बनाती है। जो अपनी माता के प्रति सच्चे अर्थों में श्रद्धावान् है, वही दूसरे के मातृप्रेम से द्रवित हो सकता है। मातृभूमि को जो प्रेम करता है, वह कभी हृदय की संकीर्णता को सहन नहीं कर सकता।
 जनता के पास नेत्र हैं, लेकिन देखने की शक्ति उनमें साहित्यसेवी को भरनी है। भारतीय साहित्यसेवी का कर्तव्य इस समय कम नहीं है। उसे अपने पैरों के नीचे की दशांगुल भूमि से पृथिवी-पुत्र धर्म का सच्चा नाता जोड़कर उसी भावना और रस से सींच देना है।

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अनुक्रम

भूमिका—5

द्वितीय संस्करण—7

1. पृथिवी-पुत्र—11

2. पृथिवी-सूक्त : एक अध्ययन—14

3. भूमि को देवत्व प्रदान—35

4. जनपदीय अध्ययन की आँख—39

5. जानपद जन—53

6. जनपदों का साहित्यिक अध्ययन—56

7. जनपदीय कार्यक्रम—59

8. जनपदों की कहानियाँ—64

9. लोकवार्त्ता शास्त्र—69

10. राष्ट्रीय कल्पवृक्ष—71

11. राष्ट्र का स्वरूप—74

12. हिन्दी साहित्य का ‘समग्र’ रूप—79

13. साहित्य-सदन की यात्रा—83

14. लोकोक्ति-साहित्य का महत्त्व—90

15. हिन्दी पत्रकार और भारतीय संस्कृति—101

16. हमारी उपेक्षा का एक नमूना—104

17. सम्पादक की आसन्दी—106

18. ग्रामीण लेखक—108

19. कैलास मानस-यात्रा—112

20. राष्ट्र की अमूल्य निधि—122

21. वणिक्-सूत्र—127

परिशिष्ट (पत्र)—132

22. लोक-कहानी—161

23. गढ़वाली लोकगाथाएँ—165

24. निमाड़ी लोक-गीत—170

25. बाघेली लोक-गीत—174

26. धुँयाल या गढ़वाली लोक-गीत—182

27. गुजराती लोक-गीत—188

28. धनुर्मह और गिरिमह—193

29. ग्रामोद्योग शब्दावली—202

30. किसान की जय में सबकी जय—208

31. धरती—210

32. हिन्दी साहित्य में लोक-तत्त्व—217

33. गौ रूपी शतधार झरना—223

34. वीर-ब्रह्म—240

35. गाहा और पल्हाया—251

36. कृषक जीवन सम्बन्धी शब्दावली—257

37. यक्ष—263

टिप्पणियाँ—272

The Author

Dr. Vasudeva Sharan Agrawala

डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल

जन्म : सन् 1904।

शिक्षा : सन् 1929 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए.; तदनंतर सन् 1940 तक मथुरा के पुरातत्त्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे। सन् 1941 में पी-एच.डी. तथा सन् 1946 में डी.लिट्.। सन् 1946 से 1951 तक सेंट्रल एशियन एक्टिविटीज म्यूजियम के सुपरिंटेंडेंट और भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष पद का कार्य; सन् 1951 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी (भारती महाविद्यालय) में प्रोफेसर नियुक्त हुए। वे भारतीय मुद्रा परिषद् नागपुर, भारतीय संग्रहालय परिषद् पटना और ऑल इंडिया ओरिएंटल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन बंबई आदि संस्थाओं के सभापति

भी रहे।

रचनाएँ : उनके द्वारा लिखी और संपादित कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं—‘उरु-ज्योतिः’, ‘कला और संस्कृति’, ‘कल्पवृक्ष’, ‘कादंबरी’, ‘मलिक मुहम्मद जायसी : पद्मावत’, ‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’, ‘पृथिवी-पुत्र’, ‘पोद्दार अभिनंदन ग्रंथ’, ‘भारत की मौलिक एकता’, ‘भारत सावित्री’, ‘माता भूमि’, ‘हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन’, राधाकुमुद मुखर्जीकृत ‘हिंदू सभ्यता’ का अनुवाद।  डॉ. मोती चन्द्र के साथ मिलकर ‘शृंगारहाट’ का संपादन किया; कालिदास के ‘मेघदूत’ एवं बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ की नवीन पीठिका प्रस्तुत की।

स्मृतिशेष : 27 जुलाई, 1966।

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