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Mere Path Main Na Viraam Raha   

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Author Acharya Janaki Vallabh Shastri
Features
  • ISBN : 9789350485637
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Acharya Janaki Vallabh Shastri
  • 9789350485637
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2015
  • 256
  • Hard Cover

Description

परंपरा और प्रगति का, चिंतन और व्यवहार का, संघटना और संरचना का, सिद्धांत और प्रेरणा का, अनुभूति और अभिव्यक्‍त‌ि का, सौंदर्य और साधना का, शास्त्रीयता और रसमयता का अगर सहज और शक्‍त‌िपूर्ण सामंजस्य देखना हो तो आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के जीवन और सृजन की पड़ताल करनी होगी। मोटे तौर पर शिखर को देखकर अच्छी या बुरी अवधारणा बनाने-बिगाड़ने की जो हमारी प्रवृत्ति रही है, उसे छोड़कर ईमानदारी से शिखर-संधान करने पर शिखर का यथार्थ महत्त्व और शिखर होने की गरिमा को समझा जा सकता है। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के शिखर होने के पीछे संपूर्ण समर्पण, दीर्घ-साधना, अटल-निष्‍ठा, अकूत विश्‍वास, अडिग आस्था और ज्योतिमर्यी प्रतिभा है। जिसने अपने संपूर्ण जीवन को होम कर दिया, तय है कि उसी का जीवन यज्ञ होगा।
जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी साहित्य के शिखर व्य‌क्‍त‌ित्वों में परिगणित होते हैं तो अपनी विराट् सृजनशीलता, व्यापक जीवनानुभूतियों और गहरी संवदेनशीलता के कारण। मानवीय मूल्यों की पक्षधरता, लयात्मक अभिव्यंजना और आंतरिक राग तथा हार्दिक सहजता शास्त्रीजी की विशिष्‍ट और निजी पहचान है, जो उन्हें सबसे अलग और महत्त्वपूर्ण बनाए रखकर शिखर-समादर देती है।
शास्त्रीजी की गीतधर्मिता में रवींद्र और निराला की लयात्मक अनुभूतियाँ हैं तो मानसिक चेतना में वाल्मीकि और कालिदास का समाहार है। भावगत आध्यात्मिक गठन और चिंतन में रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का साधना-सान्निध्य है तो मनीषा में संर्घषशील पूर्णावतार कृष्ण का वैराट्य।

The Author

Acharya Janaki Vallabh Shastri

जन्म : माघ शुक्ल द्वितीया 1916।
विलक्षण प्रतिभा-संपन्न आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का आवास ‘निराला निकेतन’ साहित्य, संस्कृति, कला-साधकों के लिए तीर्थस्थल है। आचार्यश्री की साधना ने इसे सिद्ध और मुजफ्फरपुर (बिहार) को प्रसिद्ध किया। विभिन्न विधाओं में निरंतर लिखते हुए कई दर्जन पुस्तकों के लेखक शास्त्रीजी मृत्युपर्यंत प्रकृति और मनुष्य के साथ ही मानवेतर प्राणियों को भी स्नेह-सिंचित करते रहे। ‘कालिदास’, ‘राधा’, ‘हंसबलाका’, ‘कर्मक्षेत्रे मरुक्षेत्रे’ जैसी कृतियाँ अपनी विषय-वस्तु और प्रतिपादन शैली के कारण कालजयी हैं। कई सम्मानों-पुरस्कारों से अलंकृत शास्त्रीजी का स्वाभिमानी व्यक्‍त‌ि‍त्व साधकों के लिए प्रेरक-संबल रहा है। लेखक, चिंतक, मनीषी और ऋषि आचार्यजी कई पीढि़यों के मार्गदर्शक और निर्माता रहे हैं। संस्कृत के प्रकांड पंडित और कवि शास्त्रीजी अंग्रेजी तथा उर्दू के विद्वान् अध्येता थे।
स्मृति शेष : 7 अप्रैल, 2011 ।

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