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Madhya Pradesh Ki Lokkathayen   

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Author Vasant Nirgune
Features
  • ISBN : 9789355210326
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Vasant Nirgune
  • 9789355210326
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2021
  • 160
  • Soft Cover
  • 200 Grams

Description

प्रस्तुत पुस्तक में मध्य प्रदेश की चार संस्कृतियों और बोलियों की लोककथाओं का संकलन है। ये संस्कृतियाँ और बोलियाँ अपने-अपने वाचिक परंपरागत साहित्य का अकूत भंडार हैं। निमाड़ी, मालवी, बुंदेली और बघेली बोलियाँ अपनी-अपनी संस्कृति और साहित्य का संचरण तथा संरक्षण करती आई हैं। इनमें गीत, कथा, गाथा, लोकोक्ति, नृत्य, नाट्य, शिल्प आदि सभी शामिल हैं, जो वाचिक हैं।
कथाएँ ज्ञान का सागर हैं। उनमें मानव जिज्ञासा के हर प्रश्न के उत्तर मिल जाते हैं। इसलिए कथारस को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, पर इस रस को पाने के लिए अपने मस्तिष्क में वैसा ही निर्मल भाव उत्पन्न करने की जरूरत होगी।
निमाड़ी लोककथाएँ विंध्य और सत्पुड़ा की मध्यभूमि की ऊष्म जलवायु की तपती कहानियाँ हैं, जो नर्मदा के दोनों तटों के पवित्र जल में बारहों महीने डुबकियाँ लगाती हैं। मालवी लोककथाएँ मालवा की शस्य-श्यामला भूमि की वार्त्ताएँ हैं। बुंदेली लोककथाएँ बुंदेलखंड के शौर्य, साहस और शृंगार की भूमि की पारदर्शी कथाएँ हैं। बघेली लोककथाएँ एक अर्थ में रिमही, यानी नर्मदा संस्कृति की ही बघेलखंडी कथाएँ हैं। रीवा का नाम भी रेवा के ‘रव’ से बना है।
इन लोककथाओं में प्रदेश के जनजातीय जीवन के आदिम स्वर और छवियाँ अंकित हैं, क्योंकि लोककथाओं का मूल उत्स तो आदिम कथाएँ ही हैं।

The Author

Vasant Nirgune

वसंत निरगुणे जनजातीय और लोक-संस्कृति, साहित्य और कला के अध्येता हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश के निमाड़, मालवा, बुंदेलखंड तथा बघेलखंड के अलावा छत्तीसगढ़ की कला-परंपरा, कलारूपों और वाचिक-परंपरा के अनेक रूपाकारों तथा गोंड, बैगा, कोरकू, भील, सहरिया, भारिया एवं कोल जनजातियों पर, विशेष रूप से समग्र जनजातीय सांस्कृतिक परंपरा का अध्ययन किया है। वे स्वयं एक लोक-परंपरा से जुड़े हैं। 
श्री निरगुणे का जन्म पुराण प्रसिद्ध नगरी माहिष्मती, वर्तमान महेश्वर (पश्चिम निमाड़) मध्य प्रदेश में हुआ। उन्हें साहित्य अकादेमी, दिल्ली का भाषा सम्मान, टैगोर रिसर्च स्कॉलर फैलोशिप तथा प्रदेश के अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें श्रीनरेश मेहता वाङ्मय सम्मान और मंडन मिश्र सम्मान प्रमुख हैं। वे तीस से अधिक पुस्तकों के रचयिता हैं। उन्होंने सोवियत संघ रूस में आयोजित ‘भारत महोत्सव’ में भाग लिया। उन्होंने पाँच लघुकला फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया तथा भोपाल के जनजातीय संग्रहालय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वे पूर्व सर्वेक्षण अधिकारी, आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी, भोपाल में रहे हैं।

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