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Author Vrindavan Lal Verma
Features
  • ISBN : 9788173152559
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st,
  • ...more

More Information

  • Vrindavan Lal Verma
  • 9788173152559
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st,
  • 2016
  • 208
  • Hard Cover

Description

इंद्रसेन : शकों को पराजित करके क्या हम उनके बाल-बच्चों का वध करेंगे? कभी नहीं, राजन्। यदि वे हमारी संस्कृति के होकर हमारे देश में रहेंगे तो उनकी उसी प्रकार रक्षा की जाएगी जैसी आर्य जगे की की जाती है।
रामचंद्र : आप यह कहते हैं और वे लोग हमारे देश के रक्त से दिन-रात, प्रत्येक क्षण तर्पण करते चले जा रहे हैं! इंद्रसेन : इसका निवारण करने के लिए विष्णु के एक हाथ में गदा है। दुर्वृत्तियों का दमन करने के लिए दूसरे हाथ में चक्र है। स्पष्ट स्वर में नीति और शौर्य के मेल की घोषणा करके जन को जगाने के लिए हाथ में शंख है और जीवन को पुरस्कार तथा वरदान देने के लिए चौथे हाथ में कमल है। कुछ लोग शंख, चक्र और गदा को त्यागकर केवल कमल की पूजा में लीन हो जाते हैं। यह उनकी भूल है। भक्ति और पुरुषार्थ का, हंस और मयूर का मेल होना चाहिए।
रामचंद्र : मैं समझा नहीं, देव? इंद्रसेन : हंस बुद्धि-विवेक, प्रज्ञा, मेधा, भक्ति और संस्कृति का प्रतीक है; मयूर तेज, बल और पराक्रम का। दोनों का समन्वय ही आर्य संस्कृति है। जीवन और परलोक-दोनों की प्राप्ति का एकमात्र साधन।
रामचंद्र : कापालिकों ने प्रण किया है कि वे शकों के मुंडों की माला पहिनेंगे और उनके शरीर की राख को अपने तन में मलेंगे। क्या यह अनुचित है?
इंद्रसेन : इससे बढ़कर अनुचित और क्या होगा! जब शकों की पराजय हो जाएगी और संस्कृति फिर अपने प्रबल मनोहर रूप में व्याप्त होने को होगी, तब ये कापालिक किसकी मुंडमाला पहिनेंगे? किसकी भस्म शरीर पर लपेटेंगे?

The Author

Vrindavan Lal Verma

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

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