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Author Vrindavan Lal Verma
Features
  • ISBN : 9788173154379
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vrindavan Lal Verma
  • 9788173154379
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 184
  • Hard Cover

Description

फूलचंद : क्या कर रहे हो, गोकुल?
गोकुल : जो कुछ तुम कर रहे हो । तुम... तुम किसी सद‍्भावना या प्रेमवश कर रहे हो और मैं हिंसावश । (हसँता है) जल्दी करिए डॉक्टर साहब! उसका कष्‍ट दूर हो और मेरा पागलपन ।
भीडाराम : चमड़ा दे रहे हो और खून भी-और शादी भी नहीं करोगे!
फूलचंद : (कुढ़कर) काम बाँट लो न, हवलदारजी! तुम खून दे दो और उसके साथ विवाह कर लो! यह चमड़ा दे देंगे और अपनी हिंसा को साथ लेकर चले जाएँगे!
(डाक्टॅर और गोकुल हसँते हैं ?)
भीडाराम : ओह! मुझको याद आ गया, यह तो वह बाबू है जिसने माफी माँगी थी ।
गोकुल : बेशक माफी माँगी थी । मैंने काम ही ऐसा किया था । उस बाबू का पता तो आपको लगा न होगा! शायद मर ही गया हो बिचारा ।
भीडाराम : ऐसा ही जान पड़ता है । मिलता तो उससे कुछ बात जरूर करता । छोकरा फौज के लायक था ।
-ड़सी पुस्तक से
वर्माजी के इस सामाजिक नाटक में हमारे विद्यार्थियों में आचरण का जो असंयम और भोंडापन तथा साथ ही कभी-कभी उन्हीं विद्यार्थियों में त्याग की महत्ता दिखाई पड़ती है, उसका अच्छा सामंजस्य है । निश्‍चय ही यह उच्च कोटि की कृति है ।

The Author

Vrindavan Lal Verma

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

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