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Atmakatha by Ramprasad Bismil

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Author Ramprasad Bismil
Features
  • ISBN : 9789380183381
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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  • Kindle Store

More Information

  • Ramprasad Bismil
  • 9789380183381
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2020
  • 112
  • Hard Cover
  • 150 Grams

Description

अंतिम समय निकट है। दो फाँसी की सजाएँ सिर पर झूल रही हैं। पुलिस को साधारण जीवन में और समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में खूब जी भर के कोसा है। खुली अदालत में जज साहब, खुफिया पुलिस के अफसर, मजिस्ट्रेट, सरकारी वकील तथा सरदार को खूब आड़े हाथों लिया है। हरेक के दिल में मेरी बातें चुभ रही हैं। कोई दोस्त, आशना अथवा यार मददगार नहीं, जिसका सहारा हो। एक परमपिता परमात्मा की याद है। गीता पाठ करते हुए संतोष है—
जो कुछ किया सो तैं किया,
मैं खुद की हा नाहिं,
जहाँ कहीं कुछ मैं किया,
तुम ही थे मुझ माहिं।
‘जो फल की इच्छा को त्याग करके कर्मों को ब्रह्म में अर्पण करके कर्म करता है, वह पाप में लिप्‍त नहीं होता। जिस प्रकार जल में रहकर भी कमलपत्र जलमय नहीं होता।’ जीवनपर्यंत जो कुछ किया, स्वदेश की भलाई समझकर किया। यदि शरीर की पालना की तो इसी विचार से कि सुदृढ़ शरीर से भली प्रकार स्वदेश-सेवा हो सके। बड़े प्रयत्‍नों से यह शुभ दिन प्राप्‍त हुआ। संयुक्‍त प्रांत में इस तुच्छ शरीर का ही सौभाग्य होगा। जो सन् 1857 के गदर की घटनाओं के पश्‍चात् क्रांतिकारी आंदोलन के संबंध में इस प्रांत के निवासी का पहला बलिदान मातृ-वेदी पर होगा।
—इसी पुस्तक से
अमर शहीद, क्रांतिकारियों के प्रेरणा-ग्रंथ पं. रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की आत्मकथा मात्र आत्मकथा नहीं है। उनके जीवन के सद‍्गुणों का सार है, जो भावी पीढ़ियों के लिए अत्यंत प्रेरणादायी है। हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक।

The Author

Ramprasad Bismil

क्रांतिकारियों के शिरमौर पं. रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म 1897 में शाहजहाँपुर (उ.प्र.) में हुआ। तेरह-चौदह वर्ष की अवस्था में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा पूरी की। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़ने के बाद वे पक्के आर्यसमाजी बन गए। भाई परमानंद की पुस्तक ‘तवारीख-ए-हिंद’ पढ़कर वे बहुत प्रभावित हुए और क्रांतिकारी कार्यों में संलग्न हो गए। उन्होंने पैसों के लिए ‘अमेरिका ने स्वतंत्रता कैसे प्राप्‍त की’ पुस्तक प्रकाशित कराई। ‘बिस्मिल’ को क्रांतिकारी दल के संचालन का कार्यभार सौंपा गया। उन्होंने अनेक पुस्तकें तथा जीवनियाँ लिखीं। धन के अभाव की पूर्ति के लिए उनके दल ने काकोरी में रेल से सरकारी खजाना लूटा। बाद में इस केस के सभी क्रांतिकारी पकड़े गए। 19 दिसंबर, 1927 को उन्हें फाँसी दे दी गई। फाँसी से पूर्व जेल में ही उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। आजादी के शहीदों में उनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है।

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