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Satya Ke Sath Mere Prayog

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Author Mahatma Gandhi
Features
  • ISBN : 9789350480489
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Mahatma Gandhi
  • 9789350480489
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 216
  • Hard Cover
  • 435 Grams

Description

सत्य के साथ मेरे प्रयोग मैं जो प्रकरण लिखने वाला हूँ, इनमें यदि पाठकों को अभिमान का भास हो, तो उन्हें अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि मेरे शोध में खामी है और मेरी झाँकियाँ मृगजल के समान हैं। मेरे समान अनेकों का क्षय चाहे हो, पर सत्य की जय हो। अल्पात्मा को मापने के लिए हम सत्य का गज कभी छोटा न करें।
मैं चाहता हूँ कि मेरे लेखों को कोई प्रमाणभूत न समझे। यही मेरी विनती है। मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि उनमें बताए गए प्रयोगों को दृष्‍टांत रूप मानकर सब अपने-अपने प्रयोग यथाशक्‍ति और यथामति करें। मुझे विश्‍वास है कि इस संकुचित क्षेत्र में आत्मकथा के मेरे लेखों से बहुत कुछ मिल सकेगा; क्योंकि कहने योग्य एक भी बात मैं छिपाऊँगा नहीं। मुझे आशा है कि मैं अपने दोषों का खयाल पाठकों को पूरी तरह दे सकूँगा। मुझे सत्य के शास्‍‍त्रीय प्रयोगों का वर्णन करना है। मैं कितना भला हूँ, इसका वर्णन करने की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है। जिस गज से स्वयं मैं अपने को मापना चाहता हूँ और जिसका उपयोग हम सबको अपने-अपने विषय में करना चाहिए।
—मोहनदास करमचंद गांधी
राष्‍ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग हम सबको अपने आपको आँकने, मापने और अपने विकारों को दूर कर सत्य पर डटे रहने की प्रेरणा देती है।

The Author

Mahatma Gandhi

2 अक्‍तूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जनमे मोहनदास करमचंद गांधी विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्‍त कर बैरिस्टर बने। उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए आजादी की लड़ाई में सत्याग्रह और अहिंसा को अपना अस्त्र बनाया।
गांधीजी ने अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास में ‘फीनिक्स’ आश्रम की स्थापना की तथा वहाँ से ‘इंडियन ओपिनियन’ अखबार निकाला। स्वदेश लौटकर आजादी की लड़ाई के पथ-प्रदर्शन बने। उन्होंने ‘हरिजन’ सहित कई समाचार-पत्रों का संपादन किया तथा अनेक पुस्तकें लिखीं। बापू ने ‘सत्याग्रह’, ‘सविनय अवज्ञा’, ‘असहयोग आंदोलन’ तथा ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलनों का नेतृत्व कर भारत को स्वतंत्र कराया।
समाज-सुधारक और विचारक के रूप में भी उनका योगदान अनुपम है। जातिवाद, छुआछूत, परदा-प्रथा, बहु-विवाह, विधवाओं की दुर्दशा, नशाखोरी और सांप्रदायिक भेदभाव जैसी अनेक सामाजिक बुराइयों के सुधार हेतु रचनात्मक संघर्ष किया और राष्‍ट्रीय एकता के लिए हिंदी को ‘राष्‍ट्रभाषा’ घोषित किया।
स्मृतिशेष : 30 जनवरी, 1948।

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