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Vaishvik Yug Ka Bharat : Aarthik Sudhar Aur Samaveshi Vikas Ka Aadhar   

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Author Vandna Dangi
Features
  • ISBN : 9789352669448
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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More Information

  • Vandna Dangi
  • 9789352669448
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 416
  • Hard Cover

Description

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था का संरचनात्मक स्वरूप बहुत तेजी से बदला। फिर चाहे नोटबंदी जैसा कठोर फैसला हो या फिर जी.एस.टी. जैसे चिरप्रतीक्षित बदलाव को आखिरकार लागू करने में सफलता, कई मायनों में भारत का अर्थतंत्र ऐसे अनेक निर्णयों, नीतियों और प्रणालियों के क्रियान्वयन से प्रभावित हुआ है। 
वर्षों से गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन की समस्याओं से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे तेज गति से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना वाकई यह दर्शाता है कि किस तेजी से भारत में सर्वांगीण विकास करने की दिशा में भरपूर कोशिशें की गईं।
वैश्वीकरण के इस युग में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे नीतिगत, भू-राजनैतिक तथा आर्थिक बदलावों से भी प्रभावित होती है। जहाँ एक ओर वैश्विक आर्थिक विकास दर में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था लाभान्वित हुई, वहीं दूसरी ओर ब्रेक्सिट और अमेरिकी संरक्षणवाद जैसी नीतियों ने कई चुनौतियाँ भी पेश की हैं।
देश-विदेश में हो रहे परिवर्तनों के सामान्य जनजीवन से लेकर व्यापक अर्थतंत्र पर पड़ रहे प्रभावों का विश्लेषण करती तथा सुनहरी, सशक्त, समृद्ध, समुन्नत भारतीय अर्थव्यवस्था के  स्वरूपका दिग्दर्शन कराती एक पठनीय कृति।

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अनुक्रम  
एक सराहनीय प्रयास — Pgs. 7 77. क्या धूमिल हो जाएगी रिजर्व बैंक की छवि — Pgs. 236
कार्य की निरंतरता चिरंतन हो — Pgs. 9 78. क्या है ब्रेक्सिट के मायने? — Pgs. 238
आमुख — Pgs. 11 79. रोजगार केंद्रित होगी नई कपड़ा नीति — Pgs. 240
आभार — Pgs. 15 80. व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक नीति कितनी प्रभावी — Pgs. 242
1. तेल की कीमतों में कमी कितनी प्रासंगिक? — Pgs. 25 81. आई.एम.एफ. ने कम किए आर्थिक विकास दर के पूर्वानुमान — Pgs. 244
2. वाइब्रेंट गुजरात में दिखी जीवंत भारत की तसवीर — Pgs. 28 82. निर्यातों में वृद्धि है एक सकारात्मक रुख — Pgs. 247
3. विश्व भर में बढ़ रही है आर्थिक असमानता — Pgs. 31 83. बदलेगा वस्तु एवं सेवा कर का ढाँचा — Pgs. 249
4. ओबामा की यात्रा से भारत-अमेरिकी सबंधों में खुला एक नया अध्याय — Pgs. 34 84. मौद्रिक नीति में नहीं दिखा कोई बड़ा बदलाव — Pgs. 252
5. अब आर.बी.आई. को भी बजट का इंतजार — Pgs. 37 85. महँगाई का बढ़ता स्तर चिंताजनक — Pgs. 254
6. ग्रीस समस्या के चलते यूरो संकट अभी भी बरकरार — Pgs. 40 86. इंटरनेट से बदलेगी भारत की तसवीर — Pgs. 256
7. कृषि विकास को गंभीरता से लेने की आवश्यकता — Pgs. 43 87. धीमी पड़ रही है आर्थिक विकास दर — Pgs. 258
8. आकस्मिक मुद्रा युद्ध के आसार चिंताजनक — Pgs. 46 88. राजन की नई चेतावनी कितनी सार्थक — Pgs. 260
9. नीतिगत दरों में कटौती कितनी सार्थक — Pgs. 49 89. भारी कर्ज तले दबी है चीन की अर्थव्यवस्था — Pgs. 263
10. एफएमसी और सेबी का विलय : कितना सार्थक — Pgs. 52 90. ‘एक राष्ट्र-एक बजट’ कितना प्रभावी — Pgs. 265
11. भारतीय अर्थव्यवस्था : महँगाई और विकास की दुविधा — Pgs. 55 91. बढ़ रही है भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमताएँ — Pgs. 267
12. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों के लिए सेबी ने जारी की गाइडलाइन — Pgs. 58 92. नीतिगत दरों में कटौती कितनी सार्थक — Pgs. 269
13. नई विदेश व्यापार नीति : कितनी प्रभावी? — Pgs. 61 93. कितनी विकट है एन.पी.ए. की समस्या — Pgs. 271
14. ‘मूडीज’ ने किया भारत की रेटिंग में सुधार — Pgs. 64 94. महँगाई में कमी का रुख लाभकारी — Pgs. 273
15. भारत में पूर्ण पूँजी खाता कन्वर्टिबिलिटी कितनी सार्थक? — Pgs. 67 95. मिस्त्री को टाटा है कंपनी प्रशासन का मसला — Pgs. 275
16. बारिश की अनियमितता से आहत होगी विकास दर — Pgs. 70 96. पी.एम.आई. सूचकांक ने दिए सकारात्मक संकेत — Pgs. 277
17. अब वाकई स्मार्ट बनेगा भारत — Pgs. 73 97. बड़े नोट पर बड़ी चोट का पड़ेगा दमदार असर — Pgs. 279
18. अच्छे दिनों के लिए करना होगा इंतजार — Pgs. 76 98. हेजिंग पर रिजर्व बैंक का स्पष्टीकरण — Pgs. 281
19. बढ़ते जा रहे हैं बैंकों में खराब ऋण — Pgs. 79 99. समर्थन मूल्य में वृद्धि से बढ़ेगा कृषि उत्पादन — Pgs. 283
20. निवेश सेंटीमेंट का कमजोर पड़ना चिंताजनक — Pgs. 82 100. क्या कमजोर हो रहे हैं इंफोटेक रोजगार — Pgs. 285
21. चीन के साथ आर्थिक कूटनीति कितनी सार्थक — Pgs. 85 101. क्या हैं नई मौद्रिक नीति के मायने — Pgs. 287
22. मौद्रिक नीति अब मानसून के भरोसे — Pgs. 88 102. भारतीय अर्थव्यवस्था में नजर आ रहे हैं रुझान — Pgs. 290
23. नई ऋण पुनर्गठन योजना से कम होंगे एन.पी.ए. 91 103. फेड रेट्स से प्रभावित होगी वैश्विक अर्थव्यवस्था — Pgs. 292
24. निर्यातों का घटता स्तर चिंताजनक — Pgs. 94 104. बाह्य वाणिज्यिक उधारी पर पड़ेगा अतिरिक्त भार — Pgs. 295
25. फिर से उठ खड़ा हुआ ग्रीस का संकट — Pgs. 97 105. खराब ऋणों की समस्या चिंताजनक — Pgs. 297
26. रिजर्व बैंक ने जारी की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट — Pgs. 100 106. श्रम नीति के लिए उपयोगी है नया रोजगार सर्वेक्षण — Pgs. 300
27. गाँवों में कैसे बसता है भारत — Pgs. 103 107. बढ़ रही है वैश्विक बेरोजगारी — Pgs. 303
28. कैसे हासिल होगी डबल डिजिट विकास दर — Pgs. 106 108. क्या हैं अमेरिका संरक्षणवाद के मायने — Pgs. 305
29. क्या हैं चाइनीज स्टॉक मार्केट क्रेश के मायने — Pgs. 109 109. बदलेगा भारत, बनेगा ‘टेक’ इंडिया — Pgs. 307
30. क्या महत्त्वहीन हो जाएगी रिजर्व बैंक की भूमिका — Pgs. 112 110. यथावत् रहीं नीतिगत दरें — Pgs. 310
31. मौद्रिक नीति में नीतिगत दरें यथावत् — Pgs. 115 111. क्या हैं कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मायने — Pgs. 312
32. खस्ताहाल है चीन की अर्थव्यवस्था — Pgs. 118 112. बढ़ती जा रही है महँगाई की समस्या — Pgs. 315
33. बैंकिंग क्षेत्र में जुड़ा एक नया अध्याय — Pgs. 121 113. जी.डी.पी. पर नहीं दिखा नोटबंदी का असर — Pgs. 317
34. पब्लिक सेक्टर बैंकों के लिए नई नीति कितनी प्रभावी — Pgs. 124 114. धीमी पड़ रही है ड्रेगन की रफ्तार — Pgs. 319
35. कैसे होगा तेजी से आर्थिक विकास — Pgs. 127 115. महँगाई दर में वृद्धि चिंताजनक — Pgs. 321
36. क्या कम होगा पीली धातु का सुनहरा आकर्षण — Pgs. 130 116. क्या हैं फेड दरों में वृद्धि के मायने — Pgs. 323
37. आखिर क्यों घट रहे हैं भारतीय निर्यात — Pgs. 133 117. बैंक ऋण की दर कमजोर होना चिंताजनक — Pgs. 325
38. वैश्विक व्यापार का गिरता स्तर चिंताजनक — Pgs. 135 118. मानव विकास सूचकांक ने उठाए कई गंभीर मसले — Pgs. 327
39. नीतिगत दरों में कटौती से बढ़ेगा निवेश — Pgs. 138 119. रिजर्व बैंक ने विशिष्ट बैंकों के लिए जारी किया चर्चा-पत्र — Pgs. 330
40. कितना संतोषप्रद है भारत का भुगतान संतुलन — Pgs. 141 120. भारतीय अर्थव्यवस्था में नजर आ रहे हैं अलग रुझान — Pgs. 332
41. क्या धीमी पड़ रही है वैश्विक आर्थिक विकास दर — Pgs. 144 121. आई.एम.एफ. ने जताई वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रति चिंता — Pgs. 334
42. धीमी होती रोजगार विकास दर चिंताजनक — Pgs. 147 122. नीति आयोग ने बनाया तीन वर्षीय एक्शन प्लान — Pgs. 336
43. भारी ऋणों तले दबी कई नामचीन कंपनियाँ — Pgs. 150 123. भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष हैं अनेक चुनौतियाँ — Pgs. 338
44. पूँजीगत उत्पादों को मिले प्राथमिकता — Pgs. 153 124. बढ़ता चालू खाता घाटा चिंताजनक — Pgs. 340
45. कई क्षेत्रों में बढ़ी एफ.डी.आई. लिमिट — Pgs. 156 125. क्या हैं एन.पी.ए. समस्या पर अध्यादेश के मायने — Pgs. 342
46. नए विधेयक ने सुझाया प्रभावी बैंकरप्ट्सी कोड — Pgs. 159 126. क्या नोट बंदी से आहत हुई आर्थिक विकास दर — Pgs. 344
47. अर्थव्यवस्था में बढ़ाना होगा निवेश — Pgs. 162 127. पर्यावरण समझौते से यू.एस. के पलायन से बदलेंगे कई समीकरण — Pgs. 346
48. नए नियमों से मिलेगी शेयर होल्डरों को ज्यादा ताकत — Pgs. 164 128. अर्थव्यवस्था में नजर आ रहे हैं मिश्रित प्रभाव — Pgs. 348
49. वैश्विक बाजारों में मच सकती है हलचल — Pgs. 167 129. क्या हैं एफ.आई.पी.बी. उन्मूलन के मायने — Pgs. 351
50. पर्यावरण सुरक्षा पर पेरिस में उठा बड़ा कदम — Pgs. 170 130. बढ़ रहा है राज्यों का राजस्व घाटा — Pgs. 353
51. आर्थिक विकास दर में गिरावट चिंताजनक — Pgs. 173 131. जी.एस.टी. से बदलेगा अप्रत्यक्ष करों का ढाँचा — Pgs. 356
52. बढ़ते एन.पी.ए. से त्रस्त हैं भारतीय बैंक — Pgs. 176 132. यूरो जापान समझौते से बढ़ेगा वैश्विक व्यापार — Pgs. 359
53. क्या धीमी पड़ रही है आर्थिक विकास दर — Pgs. 179 133. क्या रिजर्व बैंक करेगा नीतिगत दरों में कटौती — Pgs. 361
54. बढ़ रहा है डिजिटल प्रौद्योगिकी का महत्त्व — Pgs. 181 134. भारत पर मंडरा रहा है जलवायु परिवर्तन का खतरा — Pgs. 363
55. निर्यातों का गिरता स्तर चिंताजनक — Pgs. 184 135. नीतिगत दरों में कटौती-कितनी प्रभावी — Pgs. 365
56. कैसा रहा दावोस का मौसम — Pgs. 186 136. क्या है शेल कंपनियों का मकड़ जाल — Pgs. 367
57. क्यों जरूरी है कंपनीज कानून में संशोधन? — Pgs. 188 137. आर्थिक विकास दर सुस्त पड़ना चिंताजनक — Pgs. 370
58. बढ़ रही है भारत की सकल राष्ट्रीय आय — Pgs. 190 138. इंफोसिस से जुड़ा है कंपनी प्रशासन का मसला — Pgs. 372
59. कैसे मिले खराब ऋणों से छुटकारा? — Pgs. 192 139. नोटबंदी का असर व्यापक — Pgs. 374
60. ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहा है ऋणों का भार — Pgs. 194 140. बढ़ रहा है घरेलू ऋणों का आकार — Pgs. 376
61. यूनियन बजट चला गाँवों की ओर — Pgs. 197 141. उपभोक्ता के विश्वास में गिरावट चिंताजनक — Pgs. 378
62. धीमी पड़ती जा रही है चीन की अर्थव्यस्था — Pgs. 200 142. विकास के लिए विनिर्माण और रोजगार, दोनों अहम — Pgs. 380
63. नहीं चल सकेगी बिल्डरों की मनमानी — Pgs. 202 143. आर्थिक विकास दर का कमजोर पड़ना चिंताजनक — Pgs. 383
64. जारी है निर्यात में गिरावट का दौर — Pgs. 204 144. मौद्रिक नीति में यथावत् रहीं ब्याज दरें — Pgs. 385
65. भारत में बढ़ेगा ई-कॉमर्स का रुतबा — Pgs. 207 145. आई.एम.एफ. ने घटाया भारत की आर्थिक विकास दर का पूर्वानुमान — Pgs. 388
66. मौद्रिक नीति से बढ़ेगी वित्तीय तरलता — Pgs. 209 146. थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट एक शुभ संकेत — Pgs. 390
67. अच्छे मानसून से भारतीय अर्थव्यवस्था होगी लाभान्वित — Pgs. 211 147. सरकारी बैंकों का पुनः पूँजीकरण कितना सार्थक? — Pgs. 392
68. वैश्विक विकास दर के पूर्वानुमान में कमी चिंताजनक — Pgs. 213 148. भारत में व्यवसाय करना हुआ आसान — Pgs. 394
69. ‘गरीबी हटाओ’ एक्शन प्लान कितना प्रभावी — Pgs. 216 149. वैश्विक आर्थिक आउटलुक में सुधार कितना सार्थक — Pgs. 396
70. लघु और मध्यम उद्योगों से बढ़ रही जी.डी.पी. 219 150. अमेरिका-चीन की दोस्ती के मायने — Pgs. 399
71. बढ़ती डिफॉल्ट समस्या है चिंताजनक — Pgs. 222 151. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग में सुधार है एक सकारात्मक संकेत — Pgs. 401
72. मात्र एक प्रतिशत लोगों ने भरा टैक्स — Pgs. 224 152. आई.बी.सी. कोड संशोधन अध्यादेश 2017 के मायने — Pgs. 403
73. चीन की अर्थव्यवस्था पर बढ़ रहा है ऋणों का भार — Pgs. 226 153. आर्थिक विकास दर में वृद्धि उत्साहजनक — Pgs. 406
74. अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने दिए ब्याज दर बढ़ाने के संकेत — Pgs. 228 154. निर्यातों के लिए प्रोत्साहन है एक सकारात्मक कदम — Pgs. 408
75. आर्थिक विकास दर वृद्धि में कितनी सार्थक — Pgs. 230 155. कंपनीज संशोधन विधेयक 2017 कितना सार्थक — Pgs. 410
76. रिजर्व बैंक ने जारी की नई ऋण पुनर्गठन नीति — Pgs. 233 156. बदल रहा है ग्रामीण भारत का संरचनात्मक ढाँचा — Pgs. 412

 

The Author

Vandna Dangi

डॉ. वंदना डांगी एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और लिबोर्ड फाइनेंस लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। उन्होंने अर्थशास्‍‍त्र में बी.ए. (ऑनर्स) तथा प्रबंध-शास्‍‍त्र में एम.बी.ए. एवं पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्‍त की है। उन्होंने मुंबई विश्‍वविद्यालय के जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज सहित अनेक प्रतिष्‍ठित प्रबंध संस्थानों में ‘बिजनेस एनवॉयरमेंट’, ‘मैनेजीरियल इकोनॉमिक्स’ और ‘रिसर्च मैथ्डोलॉजी’ आदि विषयों में अध्यापन किया है। वह जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित ‘एस.एस. नादकर्णी रिसर्च मोनोग्राफ’ तथा बी.एस.ई. द्वारा प्रकाशित ‘प्राइमर ऑन कैपीटल मार्केट्स ऐंड मेक्रोइकोनॉमी’ नामक पुस्तकों में लेखिका रही हैं।

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