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Bharat Gatha   

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Author Suryakant Bali
Features
  • ISBN : 9789351864769
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
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More Information

  • Suryakant Bali
  • 9789351864769
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 448
  • Hard Cover

Description

भारत की दस हजार साल पुरानी सभ्यता के इतिहास का शिखर वक्तव्य यह है कि इसके निर्माण और विकास में युग परिवर्तन कर सकनेवाला विलक्षण और मौलिक योगदान उन समुदायों और जाति-वर्गों के प्रतिभा-संपन्न एवं तेजस्वी महाव्यक्तित्वों ने किया, जो पिछली कुछ सदियों से उपेक्षा और तिरस्कार के पात्र रहे हैं, शिक्षा-विहीन, दलित बना दिए गए हैं। किसी भी समाज के जीवन-मूल्य क्या हैं, इस संसार और ब्रह्मांड के प्रति उसकी दृष्टि कितनी तर्कपूर्ण और विज्ञान-सम्मत है, मनुष्य ही नहीं, प्राणिमात्र को, वनस्पतियों तक को वह समाज किस दष्टि से देखता है, इसका फैसला इस बात से होता है कि वह समाज स्त्री को पूरा सम्मान देता है या नहीं और कि वह समाज उपेक्षावश शूद्र या दलित बना दिए वर्गों को सिर-आँखों पर बिठाता है या नहीं, और निर्धनों के प्रति उसका दृष्टिकोण मानवीय तथा रचनात्मक है या नहीं।
इसमें सकारात्मक पहलू यह है कि मनु से नैमिषारण्य तक विकसित हुए इस देश ने, थोड़ा बल देकर कहना होगा कि इस देश के हर वर्ग ने ऐसे हर योगदान को परम सम्मान देकर शिरोधार्य किया है। ये सभी, कवष ऐलूष हों या अगस्त्य, शंबूक हों या पिप्पलाद, वाल्मीकि हों या उद्दालक, सूर्या सावित्री हों या गार्गी वाचक्नवी, शबरी हों या हनुमान, महिदास ऐतरेय हों या अथर्वा, वेदव्यास हों या सत्यकाम जाबाल, विदुर हों या एकलव्य या फिर हों महामति सूत—ये सभी कभी उन वर्गों के नहीं रहे, जिन्हें बड़ा या प्रिविलेज्ड  वर्ग कहा जा सकता हो। इनको, वसिष्ठ, विश्वामित्र और परशुराम के इन सहधर्मियों को इतिहास से निकाल दीजिए तो क्या बचता है हमारी सभ्यता में? युगनिर्माता, सभ्यतानिर्माता, राष्ट्रनिर्माता इन महाव्यक्तित्वों ने, संत रैदास, मीराबाई और महात्मा फुले के इन पूर्वनामधेयों ने उन जीवनमूल्यों व धर्म का विकास किया, जिसको आप एक ही नाम दे सकते हैं—सनातन धर्म। भारत के इन मीलपत्थरों और प्रकाशस्तंभों ने जिस सभ्यता का निर्माण किया, जिस राष्ट्र का निर्माण किया, जिस सनातन धर्म और सनातन विकसनशील संस्कृति का निर्माण किया, उसी का नाम है भारत। इन विराट् ज्योतिपुंजों ने अपना सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्य निभा दिया तथा कृतज्ञ राष्ट्र ने इन्हें सदैव अपनी स्मृतियों में, इतिहास की अपनी पोथियों में सादर सँजोकर रखा है। पर टेक्नोलॉजी, प्रतिस्पर्धा, विज्ञान, तर्क और समृद्धि के मौजूदा दौर में हम किस तरह के जीवनमूल्यों में निष्ठा रखते हैं, भारत राष्ट्र के निर्माण का कैसा सपना सँजोते हैं, अपने देश की सनातन जीवनधारा को कैसे स्वच्छ और पारदर्शी बनाए रखते हैं, यह इस बात से तय होगा कि हम स्त्री को स्वाभिमान और सम्मान का सर्वोच्च सिंहासन दे पाने में सफल होते हैं या नहीं, और कि समाज के उपेक्षित एवं निर्धन वर्गों के प्रति सहज कृतज्ञता और अपनेपन का महाभाव पैदा करते हैं या नहीं। भारत की सभ्यता का यही शिखर-वक्तव्य है।
भारत गाथा इसी चिंतन की परिणति है।

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अनुक्रम 48. अंबा : दुर्धर्ष और अपराजेय संकल्प की प्रतीक—257
आशीर्वाद—संतश्री रमेश भाई ओझा 49. सत्यवती : सत्यवती को जानना हो तो थोड़ा साहस सँजोइए—261
भारतं वन्दे—डॉ. सरस्वती बाली 50. गांधारी : व्यास ने अन्याय किया है गांधारी के साथ—266
प्रस्तावना 51. कुंती : कुंती के समय बदल रही थीं सामाजिक मान्यताएँ—271
संवाद : भारत की सभ्यता के दस हजार साल 52. द्रौपदी (1) : अन्याय के सतत प्रतिरोध का प्रतीक—276
पूर्व कथन : भारत की सभ्यता का शिखर वक्तव्य 53. द्रौपदी (2) : अपने समय का अद्वितीय नारी चरित्र—281
मंगलकामना : शुल यजुर्वेद 22.22— 54. एकलव्य : आम आदमी के जरिए एक खास संदेश—286
1. पहचान : वे इबारतें जो हमने खुद लिखी थीं—29 55. द्रोण : द्रोण को किस बात के लिए याद किया जाए?—290
2. इतिहास :  एक अघटित को इतिहास बनाने का छल —33 56. कर्ण : अपने समय का तेजस्वी महापुरुष—295
3. आठ हजार साल पहले : वेद हमारे देश की सबसे पुरानी कविता—37 57. दुर्योधन : इतिहास ने दुर्योधन से पूरा न्याय नहीं किया—299
4. जिस दौरान वेद लिखे जाते रहे महाभारत से पहले के तीन हजार साल—41 58. युधिष्ठिर : जो द्वापर युग के मर्यादापुरुषोाम थे—304
5. करीब 8000 वर्ष पूर्व : प्रथम सम्राट् मनु को जानोगे तो दीवाने हो जाओगे—46 59. यक्ष-प्रश्न : यक्ष के एक सौ चौबीस सवालों का विज—309
6. यज्ञ : संस्था जिसे हम लगभग खो चुके हैं—51 60. महाभारत युद्ध (1) : महाभारत में धर्म किसके पास था?—313
7. वसिष्ठ : जिन्होंने दिया था राजसा पर अंकुश का विचार—56 61. महाभारत युद्ध (2) : इस लड़ाई में कौन जीता, कौन हारा?—317
8. तीर्थंकर ऋषभदेव : दार्शनिक-राजा की परंपरा के प्रवर्तक—61 62. प्रबंधकाव्य महाभारत (1) : करीब 5000 वर्ष पूर्व जो धर्मशास्त्र भी है, पाँचवाँ वेद भी—321
9. भरत : जिनसे मिला इस देश को अपना नाम भारतवर्ष—65 63. प्रबंधकाव्य महाभारत (2) : हमारी एक अद्वितीय निधि—325
10. सरस्वती : एक गुम हो चुकी नदी जो कभी नदीतमा थी—70 64. श्रीमद्भगवद्गीता (1) :  हमारे विषाद को प्रसाद में बदलती है गीता—329
11. ब्रह्मदंड बनाम राजदंड हमारी सभ्यता के चेहरे की एक खास पहचान—74 65. श्रीमद्भगवद्गीता (2) : भारत के अनेकांत दर्शन का महाग्रंथ—334
12. पृथु : पहली बार हुआ किसी राजा का राज्याभिषेक—78 66. परीक्षित : हमारे देश की एक असाधारण परंपरा के प्रवर्तक—339
13. सप्तर्षि : जो हमारे दिलो-दिमाग पर छाए हुए हैं—82 67. भागवत महापुराण : भति परंपरा का प्राचीनतम कथा-ग्रंथ —343
14. करीब 7000 वर्ष पूर्व गायत्री मंत्र विश्वामित्र ने रचा था ऋग्वेद का पहला मंत्र—87 68. शुकदेव : परम ज्ञान के पूर्णावतार—347
15. शुन:शेप : यों भुला दिया ऋग्वेद के इस शतर्ची महाकवि को—92 69. वेदव्यास : 5000 वर्ष पूर्व ज्ञान-विज्ञान को पीढि़यों तक सँजोनेवाले—351
16. परशुराम भार्गव : देश की पहली बड़ी लड़ाई के महानायक —97 70. महाराज जनमेजय जिन्होंने करवाया इतिहास का पहला और आखिरी सर्पयज्ञ—356
17. 6700 वर्ष पूर्व : दीर्घतमा मामतेय : वैदिक कविता के कविकुलगुरु —102 71. गार्गी वाचनवी : अपने समय की प्रखर अध्यात्मवे—361
18. भरद्वाज : जो दुष्यंत-पुत्र भरत के युवराज बने—107 72. मैत्रेयी : गार्गी को जान चुके हैं, अब मैत्रेयी को जानिए—65
19. सोमयाग : जिससे जुड़े हैं हमारे जीवन के कई संदर्भ—111 73. याज्ञवल्य आत्मज्ञान और संसार को बराबर महव देनेवाले महादार्शनिक—370
20. अब तक का विहंगावलोकन : सभ्यता के प्रसार का अर्थ—116 74. उद्दालक आरुणि : ‘तत् त्वमसि’ के प्रथम प्रवता—375
21. भगीरथ : जो गंगा को हमारी धरती तक ले आए—121 75. सत्यकाम जाबाल : तनावों से भरे समाज का एक सरल मानव —380
22. मिथिला का जनक वंश : कैसे तलाशें विदेहराज जनक को—126 76. श्वेतकेतु : 4850 वर्ष पूर्व सामाजिक मर्यादा जो श्वेतकेतु ने कायम की—385
23. कवष ऐलूष : वैदिक कविता को जमीन से जोड़नेवाला कवि—131 77. सुवर्चला : श्वेतकेतु को महापुरुष बनानेवाली—390
24. अगस्त्य : विन्ध्य पार करने का आसान रास्ता बनानेवाले—136 78. नचिकेता : नचिकेता ने माँगे यमराज से तीन वर—395
25. ऋषि शंबूक : तपस्या को नई परिभाषा देनेवाले—141 79. अष्टावक्र : संसार, शरीर और मृत्यु को जीतनेवाले—400
26. शबरी : रामकथा का अभिन्न अंग बन चुकी श्रमणी—147 80. ब्राह्मण ग्रंथ : 4500-3800 वर्ष पूर्व जिन्हें जाननेवाले कम, समझनेवाले और भी कम हैं—405
27. कुलपति वाल्मीकि : लौकिक संस्कृत के आदिकवि—151 81. 4500 वर्ष पूर्व के शहर याज्ञवल्य गए होंगे मूअन जो दड़ो और गार्गी गई होंगी हड़प्पा—410
28. राम : आँसुओं से भरी रहीं मर्यादापुरुषोाम की आँखें—156 82. शतपथ ब्राह्मण : एक महाग्रंथ जिसका नाम है ‘शतपथ ब्राह्मण’—415
29. सीता : नारी को मुखर बना गया मौन पृथ्वी प्रवेश—162 83. ऐतरेय ब्राह्मण : 4500 वर्ष पूर्व संघर्ष ने बनाया महिदास को महापुरुष—420
30. हनुमान : कितने विनम्र थे अंजनी-पुत्र—167 84. आरण्यक साहित्य : अरण्य जानते हैं, आरण्यक साहित्य भी जानिए—424
31. वाल्मीकि रामायण : करीब 6000 वर्ष पूर्व राम के जीवन के संग-संग लिखा गया प्रबंधकाव्य—172 85. उपनिषदें : 4500-3500 वर्ष पूर्व यानी भारत का सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक साहित्य—428
32. दंडकारण्य : सभ्यता के विपुल विकास का केंद्र—177 86. आश्रम और तपोवन : जहाँ हुआ था संस्कृति का अद्भुत प्रसार—433
33. दाशराज युद्ध : करीब 5850 वर्ष पूर्व पता नहीं हमने उसे यों भुला दिया—182 87. ईशोपनिषद् : 18 मंत्रोंवाली गागर में चिंतन का महासागर—438
34. सामवेद : कविता को संगीत तक पहुँचा देनेवाला वेद—186 88. बृहदारण्यकोपनिषद् : मधुर है बृहदारण्यकोपनिषद् का चिंतन—443
35. शिक्षा एवं प्रातिशाय ग्रंथ भाषा से नाता जोड़नेवाली सबसे पुरानी किताबें—191 89. पिप्पलाद : नर्मदा ही नहीं, कश्मीर से भी जुड़ा है पिप्पलाद का रिश्ता—448
36. दास, दस्यु, पणि कौन हैं दास? कौन हैं दस्यु? और कौन हैं पणि?—196 90. छांदोग्योपनिषद्  : रैव ने कहा, वायु में ही समाया है सब कुछ—452
37. भूमिसूत : जमीन से हमारा रत संबंध जोड़नेवाला—201 91. छांदोग्योपनिषद् : नारद ने कहा मत्रविद्या जानता हूँ, आत्मविद्या जानना चाहता हूँ—456
38. सूर्या सावित्री : करीब 5150 वर्ष पूर्व पूरा युग बदल देनेवाली कवयित्री—206 92. केनोपनिषद् : जब उमा हैमवती ने देवों का अहंकार तोड़ा—464
39. सृष्टि-सूत = नासदीय सूत किसके पास है परमेष्ठी के सवालों का जवाब—211 93. प्रश्नोपनिषद् : छह प्रश्नों में समाया प्राण दर्शन का सार—473
40. अथर्ववेद : एक वेद, लीक से हटकर—216 94. मांडूयोपनिषद् : सबसे छोटी पर सबसे कठिन उपनिषद्—481
41. संस्कृत : भारत के व्यतित्व का एक नाम—221 95. कठोपनिषद् : उठो, जागो, जाकर विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करो—488
42. यास्क : नियमित भाषाशास्त्र के प्राचीनतम प्रणेता—225 96. मुंडकोपनिषद् : एक उपनिषद् सिर्फ संन्यासियों के लिए?—496
43. कृष्ण (1) : 5000 वर्ष पूर्व या था उनके जीवन का उद्देश्य—230 97. श्वेताश्वतरोपनिषद् : श्वेताश्वतर के आश्रम में हुई एक भारी बहस—500
44. कृष्ण (2) : 5000 वर्ष पूर्व इसलिए कृष्ण कहलाए पूर्णावतार—236 98. कपिल मुनि : सांय दर्शन के प्रणेता सिद्ध पुरुष—507
45. भीष्म (1) : जिनकी प्रतिभा को लगा प्रतिज्ञा का ग्रहण—241 99. चार्वाक मुनि : जिनके लोकायत का प्रभाव कभी खत्म नहीं हुआ—513
46. भीष्म (2) : राजनीति और धर्मशास्त्र के प्रथम व्यायाता—247 100. उपसंहार :नैमिषारण्य की महासंगोष्ठी : आज से 3500 वर्ष पूर्व : 1500 ई.पू. 319
47. महात्मा विदुर : विदुर की वाणी में कृष्ण जैसा ही तेज था—252  

 

The Author

Suryakant Bali

भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभारत का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।

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