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Sampoorna Bal Kahaniyan (Vol 2)   

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Author Vishnu Prabhakar
Features
  • ISBN : 9788173157127
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vishnu Prabhakar
  • 9788173157127
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 264
  • Hard Cover

Description

“हाँ, बाबाजी!” “अब क्या होगा? दाँत तो घर ही भूल आया। अब कैसे बोलूँगा?” गजनंदन ने किसी तरह हँसी दबाकर कहा, “दाँत भूल आए! पर डरो नहीं, बाबा।” “डरूँ कैसे नहीं! मुँह से बार-बार फूँक निकल जाएगी। बच्चे और हँसेंगे।” “तब तो और भी अच्छा होगा। आपकी कहानी तो है ही हँसानेवाली। दो गुना प्रभाव पड़ेगा।” “तुझे तो हँसी सूझी है, मेरी जान निकल रही है।” “तो बाबाजी, जादू दिखाइए न अपना। बुला लीजिए दाँतों को।” बाबाजी की भृकुटि चढ़ गई। जी में आया, दे मारें एक थप्पड़! हमारी हँसी उड़ाता है नालायक! लेकिन मजबूर थे। घबरा रहे थे। बस, दो मिनट बाद कहानी पढ़नी होगी उन्हें। तभी गजनंदन ने फुसफुसाकर कहा, “बाबाजी, जादू मुझे भी आता है।” “चुप बे, चुप!”
—इसी पुस्तक से
हिंदी के अग्रणी साहित्यकार विष्णु प्रभाकरजी ने विभिन्न विधाओं में विपुल लेखन किया। अपने लेखन-कर्म के दौरान वे बाल पाठकों को नहीं भूले। अपनी बाल कहानियों में उन्होंने बाल-स्वभाव और उनके मन की जिज्ञासाओं, कौतुक कारनामों और चंचलताओं व चपलताओं को बड़ी सूक्ष्मता से उकेरा है। बाल-मन की आईना ये कहानियाँ मनोरंजक एवं प्रेरणादायी हैं।

The Author

Vishnu Prabhakar

अपने साहित्य में भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिए प्रसिद्ध रहे श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून, 1912 को मीरापुर, जिला मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा पंजाब में हुई। उन्होंने सन् 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की। तत्पश्‍चात् नौकरी करते हुए पंजाब विश्‍वविद्यालय से भूषण, प्राज्ञ, विशारद, प्रभाकर आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। उन्होंने पंजाब विश्‍वविद्यालय से ही बी.ए. भी किया। विष्णु प्रभाकरजी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत आदि प्रमुख विधाओं में लगभग सौ कृतियाँ हिंदी को दीं। उनकी ‘आवारा मसीहा’ सर्वाधिक चर्चित जीवनी है, जिस पर उन्हें ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ सदृश अनेक देशी-विदेशी पुरस्कार मिले। प्रसिद्ध नाटक ‘सत्ता के आर-पार’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ मिला तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा ‘शलाका सम्मान’ भी। उन्हें उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘गांधी पुरस्कार’ तथा राजभाषा विभाग, बिहार के ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया। विष्णु प्रभाकरजी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्‍त लोकप्रिय रहे। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करनेवाले विष्णुजी जीवनपर्यंत पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य-साधनारत रहे। स्मृतिशेष : 11 अप्रैल, 2009।

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