Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Ganga Prasad Vimal ki Lokpriya Kahaniyan   

₹300

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Ganga Prasad Vimal
Features
  • ISBN : 9789351869672
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ganga Prasad Vimal
  • 9789351869672
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2017
  • 168
  • Hard Cover

Description

इस संचयन की कहानियाँ एकाधिक बार दूसरी भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। ऐसी ज्यादातर सन् साठ के दशक में रची गई कहानियाँ हैं, जो आज भी अपनी सृजनात्मकता के कारण बाकी सृजन से अलग लगती हैं।
ऐसी अलग ढंग की कहानियों के जब अनुवाद हुए तो उन्होंने अनूदित भाषाओं के पाठकों को ज्यादा नई चीजें पढ़ने के लिए प्रेरित किया और वे अन्य भाषाओं में विशेषकर अंग्रेजी में प्रकाशित होने लगीं। 
पश्चिम में भारतीय भाषाओं का साहित्य ही वह द्वार था, जिससे आधुनिक भारत की तसवीर पश्चिमी मस्तिष्क अपने लिए तैयार कर सकता था। स्वतंत्रता के एक दशक बाद उस नए साहित्य का कई कारणों से महत्त्व था। वह आजाद भारत का प्रतिनिधि स्वर होने के साथ नए विश्व के साथ साझा करनेवाली बौद्धिकता की अकुलाहट से भरा भी था। उसमें नई सूचनाओं के आदान-प्रदान की ललक भी थी, आशंकाएँ भी थीं और भारत की बदलती करवटों का प्रामाणिक दस्तावेज भी वही था।
इसी कारण साठ के बाद के सृजन का महत्त्व रेखांकित हुआ। इन कहानियों को अपने नए पाठकों के सामने लाते हुए, प्रकाशक को भी हर्ष होता है कि चालीस-पचास बरस पहले लिखी गई ये कहानियाँ हमारे बदलते समाज की बारीकियों को चित्रित करती हैं।

__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

पुरोवाक्—7

1. बच्चा—13

2. प्रिज्म—18

3. प्रेत—24

4. इंता-फिंता—33

5. निर्वासित—47

6. अभिशाप—55

7. सैलानी—68

8. हमवतन—74

9. आत्महत्या—80

10. सन्नाटा—103

11. बाहर न भीतर—113

12. फूल कह रहे हैं—122

13. सड़क पर—130

14. खोई हुई थाती—136

15. बदहवास—142

16. विदेश में गलगल—148

17. सपनों का सच—153

18. मैं भी—161

The Author

Ganga Prasad Vimal

नए साहित्य के बहुचर्चित और प्रख्यात लेखक गंगाप्रसाद विमल का जन्म 1939 में उत्तरकाशी में हुआ। अनेक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत वे दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े और चौथाई शताब्दी अध्यापन करने के बाद भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक नियुक्त हुए, जहाँ उन्होंने सिंधी और उर्दू भाषा की राष्ट्रीय परिषदों का भी काम सँभाला। आठ बरस वे ‘यूनेस्को कूरियर’ के हिंदी संस्करण के संपादक भी रहे और भारतीय भाषाओं के द्विभाषी-त्रिभाषी शब्दकोशों के प्रकाशन में भी सक्रिय रहे। सन् 1990 के दशक में वे अतिथि लेखक के रूप में इंग्लैंड आमंत्रित किए गए। सन् 1999 में वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अनुवाद के प्रोफेसर नियुक्त हुए तथा सन् 2000 में भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। उनके अब तक पाँच उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह और इतने ही कहानी-संग्रह तथा अन्यान्य गद्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने विश्वभाषाओं की अनेक पुस्तकों का अनुवाद भी किया है। उनकी स्वयं की भी अनेक पुस्तकों का विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अलंकरणों से सम्मानित स्वतंत्र लेखक के रूप में सक्रिय हैं।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW