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Gandhiji Ki Den   

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Author Rajendra Prasad
Features
  • ISBN : 9788173156762
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Rajendra Prasad
  • 9788173156762
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2013
  • 128
  • Hard Cover

Description

“जब-जब मुझसे गांधीजी के संबंध में कुछ कहने या बोलने को कहा गया, मैं बराबर कुछ हिचकिचाता रहा और वह इसलिए कि उनके समस्त सिद्धांतों को पूर्णरूप से समझना और फिर लोगों को समझाना, कम-से-कम मेरी शक्ति के बाहर की बात है। जो कुछ थोड़ा-बहुत मैं समझ और सीख सका, उसके बारे में भी मुझे इस बात का संकोच हमेशा रहा है कि मैं उन सिद्धांतों को अपने व्यक्तिगत व सार्वजनिक जीवन में कहाँ तक अमल में ला सका हूँ। मेरा और उनका तीस-इकतीस बरस का अत्यंत निकट संपर्क रहा था और उस बीच मैंने उनसे बहुत कुछ शिक्षा— सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व नैतिक—हरेक दृष्टि से प्राप्त की। मैंने एक जगह लिखा था कि उनकी विचारधाराएँ हिमालय से निकलनेवाली निर्मल गंगा की तरह पवित्र हैं और उन्हीं धाराओं से जो कुछ जल मैं सिंचित कर सका, उसके बल पर मुझे जनता-जनार्दन की सेवा करने का थोड़ा-बहुत सौभाग्य प्राप्त हुआ। यद्यपि उनके समस्त सिद्धांतों व शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है, फिर भी उनके साथ सेवा करते-करते जो कुछ अनुभव मैंने प्राप्त किया है, उसके आधार पर भारत और संसार को गांधीजी की अनुपम देन के बारे में इस पुस्तक में अपने विचारों को व्यक्त करने का प्रयत्न किया है।”
—इसी पुस्तक से
गांधीजी की देन राजेंद्र बाबू द्वारा गांधीजी के साथ बिताए क्षणों में अनुभूत विचारों का संकलन है, जो गांधीजी के संपूर्ण व्यक्तित्व को रेखांकित करता है। एक मायने में गांधीजी के उच्चादर्शों का ज्योति-पुंज है यह पुस्तक।

The Author

Rajendra Prasad

गांधी युग के अग्रणी नेता देशरत्‍न राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सारण जिला के ग्राम जीरादेई में हुआ। आरंभिक शिक्षा जिला स्कूल छपरा तथा उच्च शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में। अत्यंत मेधावी एवं कुशाग्र-बुद्ध छात्र, एंट्रेंस से बी.ए. तक की परीक्षाओं में विश्‍वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्‍त, एम.एल. की परीक्षा में पुन: प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्‍त। 1911 में वकालत प्रारंभ, पहले कलकत्ता और फिर पटना में प्रैक्टिस।
छात्र-जीवन से ही सार्वजनिक एवं लोक-हित के कार्यों में गहरी दिलचस्पी। बिहारी छात्र सम्मेलन के संस्थापक। 1917-18 में गांधीजी के नेतृत्व में गोरों द्वारा सताए चंपारण के किसानों के लिए कार्य। 1920 में वकालत त्याग असहयोग आंदोलन में शा‌मिल। संपूर्ण जीवन राष्‍ट्र को समर्पित, कांग्रेस संगठन तथा स्वतंत्रता संग्राम के अग्रवर्ती नेता। तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष, अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषी मंत्री, संविधान सभा अध्यक्ष के रूप में संविधान-निमार्ण में अहम भूमका। 1950 से 1962 तक भारतीय गणराज्य के राष्‍ट्रपति। प्रखर चिंतक, विचारक तथा उच्च कोटि के लेखक एवं वक्‍ता। देश-विदेश में अनेक उपाधियों से सम्मानित, 13 मई, 1962 को ‘भारत-रत्‍न’ से अलंकृत।
सेवा-निवृत्ति के बाद पूर्व कर्मभूमि सदाकत आश्रम, पटना में निवास। जीवन के अंतिम समय तक देश एवं लोक-सेवा के पावन व्रत में तल्लीन।
स्मृतिशेष : 28 फरवरी, 1963।

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