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Yeh Samvidhan Hamara Ya Angrejon Ka   

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Author Devendra Swaroop
Features
  • ISBN : 9789351865544
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Devendra Swaroop
  • 9789351865544
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 160
  • Hard Cover

Description

यह पुस्तक या कहें विमर्श से इस तथ्य को रेखांकित करता है कि स्वाधीन भारत की 6 वर्ष लंबी यात्रा की परिणति भ्रष्टाचार, सामाजिक विखंडन, घोर व्यक्तिवादी, सत्तालोलुप राजनैतिक नेतृत्व के उभरने का दृश्य देखकर अनेक मित्रों के मन में प्रश्न उठा कि यदि संविधान हमारे राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करनेवाला पथ है तो 26 जनवरी, 1950 को हमने जिस सांविधानिक मार्ग पर चलना आरंभ किया, वह हमें उल्टी दिशा में क्यों ले जा रहा है? वहीं यह प्रश्न भी उभरता है कि क्या यह संविधान हमारी मौलिक रचना है या ब्रिटिश सरकार द्वारा आरोपित तथाकथित संविधान सुधार प्रक्रिया की अनुकृति? संविधान गलत है या हमारे जिस नेतृत्व ने इसे गढ़ा वह किसी भ्रम का शिकार बन गया था?
हमारे दुःखों का मूल संविधान में है। जो लोग आजादी के बाद से ही व्यवस्था परिवर्तन की पीड़ा से गुजर रहे हैं, वे इस पुस्तक से निदान पा सकते हैं। वह यह कि भारत का संविधान सन् 1935 के अधिनियम का विस्तार है। सिर्फ दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन इस संविधान में हैं। एक, विभिन्न वर्गों के आरक्षण को हटाया गया। दो, वयस्क मताधिकार दिया गया। प्रो. देवेंद्र स्वरूप की इस पुस्तक से यह समझ सकते हैं कि क्यों आजादी के इतने सालों बाद भी समाज का राज्यतंत्र से मेल नहीं बैठ पाया है? क्यों राज्यतंत्र देशज निष्ठाओं से दूर है? क्यों आमजन की सोच और समझ से उसका नाता नहीं जुड़ पाया? इन्हीं और ऐसे तमाम सवालों के जवाब इस पुस्तक में मिलते हैं। यह राजनीतिक इतिहास की वह पुस्तक है, जो भविष्य के सूर्योदय का भरोसा देती है।

The Author

Devendra Swaroop

जन्म 30 मार्च, 1926 को कस्बा कांठ (मुरादाबाद) उ.प्र. में। सन. 1947 में काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय से बी.एस-सी. पास करके सन् 1960 तक राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता। सन् 1961 में लखनऊ विश्‍वविद्यालय से एम. ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास) में प्रथम श्रेणी, प्रथम स्‍थान। सन् 1961-1964 तक शोधकार्य। सन् 1964 से 1991 तक दिल्ली विश्‍वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज में इतिहास का अध्यापन। रीडर पद से सेवानिवृत्त। सन् 1985-1990 तक राष्‍ट्रीय अभिलेखागार में ब्रिटिश नीति के विभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद‍् के ‘ब्रिटिश जनगणना नीति (1871-1941) का दस्तावेजीकरण’ प्रकल्प के मानद निदेशक। सन् 1942 के भारत छोड़ाा आंदोलन में विद्यालय से छह मास का निष्कासन। सन् 1948 में गाजीपुर जेल और आपातकाल में तिहाड़ जेल में बंदीवास। सन् 1980 से 1994 तक दीनदयाल शोध संस्‍थान के निदेशक व उपाध्यक्ष। सन् 1948 में ‘चेतना’ साप्‍ताहिक, वाराणसी में पत्रकारिता का सफर शुरू। सन् 1958 से ‘पाञ्चजन्य’ साप्‍ताहिक से सह संपादक, संपादक और स्तंभ लेखक के नाते संबद्ध। सन् 1960 -63 में दैनिक ‘स्वतंत्र भारत’ लखनऊ में उप संपादक। त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘मंथन’ (अंग्रेजी और हिंदी का संपादन)।

विगत पचास वर्षों में पंद्रह सौ से अधिक लेखों का प्रकाशन। अनेक संगोष्‍ठ‌ियों में शोध-पत्रों की प्रस्तुति। ‘संघ : बीज से वृक्ष’, ‘संघ : राजनीति और मीडिया’, ‘जातिविहीन समाज का सपना’, ‘अयोध्या का सच’ और ‘चिरंतन सोमनाथ’ पुस्तकों का लेखन।

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