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Viraat Purush Shikshavid Nanaji   

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Author Nana Deshmukh
Features
  • ISBN : 9789351860792
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Nana Deshmukh
  • 9789351860792
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 152
  • Hard Cover

Description

शिक्षा के बारे में नानाजी की कल्पना आम धारणाओं से बहुत भिन्न थी। किताबी शिक्षा को वे व्यावहारिक व मानव-प्रदत्त शिक्षा के सामने गौण मानते थे। उनके लिए शिक्षा व संस्कार एक-दूसरे के पूरक थे; एक-दूसरे के बिना अधूरे। उनका मत था कि शिक्षा व संस्कार की प्रक्रिया गर्भाधान से ही प्रारंभ हो जाती है और जीवनपर्यंत चलती है। नैतिक शिक्षा नानाजी के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी और उनका मानना था कि यह लोक शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है। अगर विद्वत्ता को संयत करने के लिए उसे लोक शिक्षा के धरातल पर नहीं उतारा गया तो विद्वत्ता पथभ्रष्ट हो जाएगी।
शिक्षा व संस्कारक्षमता का उपयोग करने के लिए उन्होंने शिशु मंदिर की कल्पना की। यह कल्पना साकार हुई 1950 में, जब गोरखपुर में नानाजी के मार्गदर्शन में सरस्वती शिशु मंदिर का श्रीगणेश हुआ। इस शिशु मंदिर का अनुकरण करते हुए देश भर में स्वतंत्र रूप से हजारों सरस्वती शिशु मंदिरों की विशाल शृंखला खड़ी हो गई, जो आज विद्या भारती के मार्गदर्शन में भारत का विशालतम गैर-सरकारी शिक्षा आंदोलन बन गया है। नागपुर का ‘बालजगत’ प्रकल्प हो या चित्रकूट में ‘ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ का अभिनव प्रयोग, नानाजी ने शिशु अवस्था से लेकर स्नातकोत्तर कक्षाओं तक शिक्षा व्यवस्था की एक अनूठी योजना देश के सामने रखी।

 

The Author

Nana Deshmukh

भारत के सार्वजनिक जीवन के तपस्वी कर्मयोगी नानाजी देशमुख राजनीति में रहकर भी जल में कमलपत्रवत् पवित्र रहने वाले एक निष्‍ठावान स्वयंसेवक थे। उनका जीवन समूचे देश की नई पीढ़ी को सतत देशभक्‍त‌ि, समर्पण व सेवा की प्रेरणा देता रहेगा।
उनका जीवन कृतार्थ जीवन था, इसलिए उनके पार्थिव का दृष्‍ट‌ि से ओझल होना मात्र शोक की बात नहीं है, बल्कि हम सभी के लिए स्वयं कृतसंकल्पित होने की बात है। उनके जीवन का अनुकरण अपने जीवन में करना, यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मोहनराव भागवत
सरसंघचालक, राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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