Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Vali Kaveri   

₹175

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Ashok Drolia , Rajani Drolia
Features
  • ISBN : 9788177212341
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ashok Drolia , Rajani Drolia
  • 9788177212341
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2014
  • 136
  • Hard Cover

Description

संगम साहित्य के रूप में संगृहीत गीत और ‘मणिमेहलै’ तथा ‘शिलप्पडिहारम्’ रचनाएँ भारतीय समाज और संस्कृति की मूल प्रवृत्तियों के बहुत निकट हैं। इनमें जीवन का जो चित्र उमड़ता है, उसे हृदयंगम किए बिना दक्षिण भारत ही नहीं, संपूर्ण भारत के इतिहास और सांस्कृतिक विकास को ठीक-ठीक समझ पाना कठिन है। दूसरी बात यह है कि इन काव्यों में तत्कालीन जीवन का जो चित्रण हुआ है, वह अपने आप में इतना पूर्ण है कि उसमें बहुत परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। हिंदी में यह सामग्री अब भी विरल रूप से ही उपलब्ध है। अंग्रेजी में इसके कुछ अच्छे अनुवाद हुए हैं, परंतु वे हिंदी पाठकों के लिए दुरूह हैं और दुर्लभ भी। अतः इस कथा के रूप में इनका परिचय कराकर हिंदी पाठकों को इस अमूल्य निधि की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है।
प्रस्तुत है यह कथा, उन्हीं की, लोक-प्रभव, शुभ, सकल सिद्धिकर। विघ्नेश्‍वर तो सरल हृदय हैं, योगक्षेम के उन्नायक हैं, बस थोड़ा सम्मान चाहिए, प्रेमपूर्ण व्यवहार चाहिए, मार्ग हमारा सुकर करें वे, उनसे यह वरदान चाहिए।

The Author

Ashok Drolia

1942 में वाराणसी के निकट चकिया में जन्म। माँ कुछ वर्षों तक वर्धा आश्रम में गांधीजी के सान्निध्य में रही थीं और व्यक्‍त‌िगत सत्याग्रह में भाग लेकर जेल भी गई थीं। उनकी हिंदी साहित्य में गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने बचपन से ही हिंदी साहित्य के अध्ययन-मनन की ओर प्रेरित किया था।
काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय से एम.ए. (अर्थशास्त्र) तथा सागर विश्‍वविद्यालय से एल-एल.बी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। लगभग दस वर्ष तक स्वदेशी सूती मिल, नैनी तथा मऊनाथभंजन में कारखाने के प्रबंधन एवं सह सचिव के पद पर कार्य करता रहा। परंतु बाद में घरेलू परिस्थितियों के कारण घर के व्यवसाय में लगना पड़ा। वर्ष 2003 में पुत्र के पुणे में नौकरी कर लेने पर कार्य-व्यवसाय से अवकाश लेकर उसके साथ रहने चला आया।
बचपन से ही इतिहास, संस्कृति एवं साहित्य की पुस्तकें पढ़ने तथा उनका संग्रह करने की रुचि। समय मिलने पर कुछ लिखता-पढ़ता भी रहा था। यद्यपि उन्हें छपवाने का कभी प्रयास नहीं किया, तथापि अवकाश के क्षणों में उन्हें उलटते-पलटते समय थोड़़ा-बहुत व्यवस्थित ढंग से लिखने की इच्छा जाग्रत् हुई।

Rajani Drolia

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW