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Author Vrindavan Lal Verma
Features
  • ISBN : 9788173151323
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vrindavan Lal Verma
  • 9788173151323
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 186
  • Hard Cover

Description

अनूप ने आसपास के गाँवों में रूपा की छानबीन की । धौजरी के पास एक सहरिनी मिली । उसने बतलाया-' खरे गोरे रंग की थी, लाल-पीली, छलकती जवानी?' ' हाँ हाँ कहाँ गई वह?' ' अरे वह तो नदी में डूबने जा रही थी..!' ' उसने बतलाया था कहाँ की है?' ' हाँ, हाँ, कहती थी धौर्रा-पिपरई की हूँ । घरवाले ने मारा तो लड-भिड़कर भाग आई । अहा! लोहू छलछला रहा था उसके रोम-रोम से!!' ' क्या घायल हो गई थी? हे राम!' ' अरे तुममें कुछ अक्कल भी है? मैंने तो उसका रंग बतलाया । ' सहरिनी ने पूछा-' तुम कौन लगते हो उसके?' ' घरवाले । ' ' आग लगे तुम्हारे हाथों में! आँख के अंधे नाम नैनसुख!! कमल के फूल को क्या सिलबट्टे से कुचला जाता है?' ' सौगंध खाता हूँ कभी नहीं मारूँगा, कड़ी बात तक नहीं करूँगा । ' ' देवगढ़ गई है । चार-पाँच दिन हो गए तब । ' ' क्या लिये थी वह अपने साथ?' ' हेल्लो! मैं क्या कहीं की पटवारी चौकीदार हूँ जो दूसरों की चीज-बस्त देखती फिरूँ! एक पोटली लिये थी, तलवार बाँधे थी! जैसे कहीं रन में जूझने जा रही हो । ' -इसी उपन्यास से गाँव में अथाई ( अगिहाने) के पास बैठकर रात-रात- भर चलनेवाले किस्से- कहानियाँ उपदेश और रोचकता में पंचतंत्र और हितोपदेश से कम नहीं हैं । वर्माजी ने अथाई कथा को लेकर उपन्यास- क्षेत्र में सफल प्रयोग किए । ' सोना ' उनका इसी तरह का प्रसिद्ध उपन्यास है ।

The Author

Vrindavan Lal Verma

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

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