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Author Vrindavan Lal Verma
Features
  • ISBN : 9788173152498
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vrindavan Lal Verma
  • 9788173152498
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 224
  • Hard Cover

Description

‘और यह कौन है, बतला?’ उन लोगों में से एक ने पूछा। गाड़ीवान ने तुरंत उत्तर दिया, ‘ललितपुर का एक कसाई।
’ इसका खोपड़ा चकनाचूर करो, दाऊजू यदि ऐसे न माने तो । असाई-कसाई हम कुछ नहीं मानते । '
' छोड़ना ही पड़ेगा । ' उसने कहा, ' इसपर हाथ नहीं पसारेंगे और न पैसे ही छुएँगे ।'
दूसरा बोला, ' क्या कसाई होने से? दाऊजू, आज तुम्हारी बुद्धि पर पत्थर पड़ गए हैं-मैं देखता हूँ, ' और तुरंत लाठी लेकर गाड़ी में चढ़ गया । लाठी का एक रज्जब की छाती में अड़ाकर उसने तुरंत रुपया पैसा निकालकर देने का हुक्म दिया । नीचे खड़े हुए उस व्यक्‍त‌ि ने जरा तीव्र स्वर से कहा, ' नीचे उतर आओ, नीचे उतर आओ । उसकी औरत बीमार है । '
' हो, मेरी बला से!' गाड़ी में चढ़े हुए लठैत ने उत्तर दिया, ' मैं कसाइयों की दवा हूँ । ' और उसने रज्जब को फिर धमकी दी । नीचे खड़े हुए उस व्यक्‍त‌ि ने कहा, ' खबरदार, जो उसे छुआ! नीचे उतरी, नहीं तो तुम्हारा सिर चूर किए देता हूँ । वह मेरी शरण आया था । '
-इसी पुस्तक से प्रस्तुत कहानी संग्रह में पाठकों को पढ़ने को मिलेंगी-' शरणागत ', ' हमीदा ' ' तोषी ', ' राखी ', ' कलाकार का दंड ', ' अँगूठी का दान ' एवं ' घर का वैरी ' जैसी लेखक की प्रख्यात कहानियाँ ।
वर्माजी की कहानियों का यह संग्रह पठनीय एवं संग्रहणीय-दोनों है ।

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अनुक्रम

१. शरणागत —Pgs. ७

२. हमीदा —Pgs. १४

३. तोषी —Pgs. २०

४. राखी —Pgs. २६

५. मालिश! मालिश!! —Pgs. ३७

६. मुँह न दिखलाना! —Pgs. ४१

७. तिरंगेवाली राखी —Pgs. ४५

८. झकोला चारपाई —Pgs. ४८

९. मेढकी का ब्याह —Pgs. ५१

१०. गम खाता हूँ —Pgs. ५५

११. इधर से उधर —Pgs. ५६

१२. कागज का हीरा —Pgs. ५९

१३. पूरन भगत —Pgs. ६३

१४. राजनीति या राजनियत —Pgs. ६७

१५. सरकारी कलम-दवात नहीं मिलेगी —Pgs. ६९

१६. चोर बाजार की गंगोत्री —Pgs. ७३

१७. राजनीति की परिभाषा —Pgs. ७९

१८. पत्नी-पूजन यज्ञ —Pgs. ८२

१९. अँगूठी का दान —Pgs. ८६

२०. रक्तदान —Pgs. ९२

२१. उन फूलों को कुचला —Pgs. ९८

२२. तब और अब —Pgs. १०४

२३. थानेदार की खानातलाशी —Pgs. १०६

२४. धरती माता तोकों सुमिरौं —Pgs. ११२

The Author

Vrindavan Lal Verma

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

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