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Sharat Chandra Ki Lokpriya Kahaniyan

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Author Sharat Chandra
Features
  • ISBN : 9789380823393
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Sharat Chandra
  • 9789380823393
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 160
  • Hard Cover
  • 330 Grams

Description

भारतीय भाषाओं के साहित्य में बँगला साहित्य की अपनी अलग पहचान है। इस भाषा के अनेक रचनाकारों ने अपनी लेखनी के दम पर विश्‍व साहित्य पर प्रभुत्व स्थापित किया। ऐसे ही रचनाकारों में बाबू शरतचंद्र चटर्जी का नाम अजर-अमर है। उनका संपूर्ण साहित्य विश्‍व की अनेक भाषाओं में अनुवादित होकर जन-जन में प्रचारित व प्रसारित हुआ। ‘देवदास’, ‘चरित्रहीन’, ‘श्रीकांत’, ‘काशीनाथ’ जैसी रचनाओं का नाम सामने आते ही शरतचंद्र का संपूर्ण व्यक्‍तित्व मानो साकार हो जाता है।
शरतचंद्र ने अपने साहित्य में भारतीय समाज की मान्यताओं व परंपराओं को उनके आदर्श़ों सहित यथार्थ रूप में चित्रित किया है। उन्होंने अपने साहित्य में सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं के बीच अपनी रोमांटिक प्रवृत्ति की छाप अवश्य छोड़ी है; समाज की कुरीतियों व कुचेष्‍टाओं पर प्रबल प्रहार किए हैं, साथ ही नारी-मन के अंतर्द्वंद्व व पीड़ा का भी मार्मिक चित्रण किया है।
शरत बाबू की इन कहानियों में समाज में व्याप्‍त बुराइयों, समस्याओं, पारिवारिक उलझनों को अलग-अलग प्रकार से चित्रित किया गया है। अनेक कहानियाँ ऐसी हैं, जो कभी भुलाई नहीं जा सकेंगी।

The Author

Sharat Chandra

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1876 को देवानंदपुर (प. बंगाल) में हुआ। बँगला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कहानीकार के रूप में ख्याति। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंटर पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने ‘बासा’ (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला। रोजगार की तलाश में शरतचंद्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क बने। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्‍ति से हुआ, जो था तो बड़ा विद्वान्, पर शराबी और उच्छृंखल था। यहीं से ‘चरित्रहीन’ का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है।
प्रमुख कृतियाँ : शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे, जिनमें ‘पंडित मोशाय’, ‘बैवुंक्‍तठेर बिल’, ‘मेज दीदी’, ‘दर्पचूर्ण’, ‘श्रीकांत’, ‘अरक्षणीया’, ‘निष्कृति’, ‘मामलार फल’, ‘गृहदाह’, ‘शेष प्रश्‍न’, ‘दत्ता’, ‘देवदास’, ‘बाम्हन की लड़की’, ‘विप्रदास’, ‘देना पावना’ आदि । बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर ‘पथेर दावी’ उपन्यास लिखा। इनके उपन्यासों पर धारावाहिक तथा फिल्में बनी हैं।
स्मृतिशेष : 16 जनवरी, 1938

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