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Samajik Vyavastha Par Vyangya   

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Author Giriraj Sharan
Features
  • ISBN : 9788173151514
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Giriraj Sharan
  • 9788173151514
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2011
  • 148
  • Hard Cover

Description

हमारे मित्र एक अद‍्भुत सवाल हल करने में व्यस्त थे । हमें देखते ही बोले, ' कितनी ही बार इस प्रश्‍न की चूल से चूल भिड़ा चुका हूँ किंतु उत्तर हर बार अव्यवस्था ही आता है । ' हम आश्‍चर्य में पड़ गए । समझ न पाए कि मामला क्या है । कुछ देर बाद उन्होंने स्वयं ही कागजों के पुलंदे से सिर ऊपर उठाया और बोले, ' व्यवस्थाएँ कई प्रकार की होती हैं । ' हमने ' हाँ ' में उत्तर देते हुए कहा, ' होती तो हैं जी । '
बोले-' जैसे समाज-व्यवस्था, अर्थ- व्यवस्था, न्याय-व्यवस्था, शांति-व्यवस्था, राजनीतिक-व्यवस्था, कानून-व्यवस्था, परिवार-व्यवस्था, नागरिक-व्यवस्था, ग्रामीण-व्यवस्था, राज-व्यवस्था और ताज-व्यवस्था । इन सारी व्यवस्थाओं को जब कभी बीजगणित के सिद्धांत पर जोड़ने का प्रयास करता हूँ तो उत्तर आता है-' घोर अव्यवस्था । '
इतना कहकर श्रीमान अमुक थोड़ा हँसे और बोले-' क्यों भाई, तुम्हारा क्या विचार है? सारी व्यवस्थाओं का जोड़ ' घोर अव्यवस्था ' ठीक है ना?' हमने अपने मित्र को समझाया कि ' श्रीमान अमुकजी, व्यवस्था कोई भी हो, वह जोड़-घटाकर देखने की चीज नहीं होती, आँखें मूँदकर भोगे जाने की चीज होती है । आप अकारण अपना समय बरबाद कर रहे हैं ।'
अपनी प्रहारक क्षमता से परिपूर्ण इस पुस्तक के व्यंग्य सामाजिक व्यवस्था की पहचान के विभिन्न दृश्य प्रस्तुत करते हैं ।

The Author

Giriraj Sharan

जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्‍ट‌ि से प्रकाशित उनके विशिष्‍ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्‍त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।

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