Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Rameshchandra Shah Ki Lokpriya Kahaniyan   

₹250

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Ramesh Chandra Shah
Features
  • ISBN : 9789351862734
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ramesh Chandra Shah
  • 9789351862734
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2015
  • 176
  • Hard Cover

Description

रमेशचंद्र शाह हिंदी के उन कम लेखकों में हैं, जो अपने ‘हिंदुस्तानी अनुभव’ को अपने कोणों से देखने-परखने की कोशिश करते हैं, और चूँकि यह अनुभव स्वयं में बहुत पेचीदा, बहुमुखी और संश्लिष्ट है, शाह उसे अभिव्यक्त करने के लिए हर विधा को टोहते-टटोलते हैं—एक अपूर्व जिज्ञासा और बेचैनी के साथ। आज हम जिस भारतीय संस्कृति की चर्चा करते हैं, शाह की कहानियाँ उस संस्कृति के संकट को हिंदुस्तानी मनुष्य के औसत, अनर्गल और दैनिक अनुभवों के बीच तार-तार होती हुई आत्मा में छानती हैं। इन कहानियों का सत्य दुनिया से लड़कर नहीं, अपने से लड़ने की प्रक्रिया में दर्शित होता है। एक मध्यवर्गी हिंदुस्तानी का हास्यपूर्ण, पीड़ायुक्त विलापी किस्म का एकालाप, जिसमें वह अपने समाज, दुनिया, ईश्वर और मुख्यतः अपने ‘मैं’ से बहस करता चलता है। शाह ने अपनी कई कहानियों  में एक थके-हारे मध्यवर्गीय हिंदुस्तानी की ‘बातूनी आत्मा’ को गहन अंतर्मुखी स्तर पर व्यक्त किया है ः उस डाकिए की तरह, जो मन के संदेशे आत्मा को, आत्मा की तकलीफ देह को और देह की छटपटाहट मस्तिष्क को पहुँचाता रहता है। इन सबको बाँधनेवाला एक अत्यंत सजग, चुटीला और अंतरंग खिलवाड़, जिसमें वे गुप्त खिड़की से अपने कवि को भी आने देते हैं। पढ़कर जो चीज याद रह जाती है, वे घटनाएँ नहीं, कहानी के नाटकीय प्रसंगों का तानाबाना भी नहीं, परंपरागत अर्थ में कहानी का कथ्य भी नहीं, किंतु याद रह जाती है एक हड़बड़ाए भारतीय बुद्धिजीवी की भूखी, सर्वहारा छटपटाहट; जिसमें कुछ सच है, कुछ केवल आत्मपीड़ा, लेकिन दिल को बहलानेवाली झूठी तसल्ली कहीं भी नहीं।
—निर्मल वर्मा

The Author

Ramesh Chandra Shah

जन्म : 1937 अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।
शिक्षा : बी.एस-सी., अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. तथा पी-एच.डी.।
रचना-संसार : ‘रचना के बदले’, ‘शैतान के बहाने’, ‘आड़ू का पेड़’, ‘पढ़ते-पढ़ते’, ‘स्वधर्म और कालगति’ (निबंध-संग्रह); ‘कछुए की पीठ पर’, ‘हरिश्चंद्र आओ’, ‘नदी भागती आई’, ‘प्यारे मुचकुंद को’, ‘देखते हैं शब्द भी अपना समय’, (काव्य-संकलन); तीन बाल कविता-संग्रह तथा दो बाल-नाटक भी; ‘गोबरगणेश’, ‘किस्सा गुलाम’, ‘पूर्वापर’, आखिरी दिन’, ‘पुनर्वास’, ‘आप कहीं नहीं रहते विभूति बाबू’, ‘असबाब-ए-वीरानी’ (उपन्यास); ‘मुहल्ले का रावण’, ‘मानपत्र’, ‘थिएटर’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह) के साथ-साथ एक यात्रा-संस्मरण, सात समालोचना पुस्तकें एवं काव्यानुवादों की चार पुस्तिकाएँ ‘तनाव’ पुस्तकमाला में; ‘राशोमन’ नाटक का अनुवाद ‘मटियाबुर्ज’ नाम से; प्रसाद रचना-संचयन तथा अज्ञेय काव्य-स्तवक, निराला-संचयन (संपादित)।
पुरस्कार-सम्मान : कई कृतियाँ पुरस्कृत; उपन्यास ‘किस्सा गुलाम’ नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आठ भारतीय भाषाओं में अनूदित। ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘शिखर-सम्मान’, ‘व्यास-सम्मान’ तथा भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से अलंकृत।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW