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Peer Muhammad Moonis : Kalam Ka Satyagrahi   

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Author Shrikant
Features
  • ISBN : 9789350480007
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Shrikant
  • 9789350480007
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2011
  • 144
  • Hard Cover

Description

पीर मुहम्मद मूनिस ने चंपारण में निलहों के अत्याचार, रैयतों का आंदोलन और महात्मा गांधी के सत्याग्रह से बिहारी हिंदी अभियानी पत्रकारिता की नींव रखी थी। वह अभियानी हिंदी पत्रकारिता इस शख्स ने चंपारण में महात्मा गांधी को ‘प्रताप’ में रिपोर्ट किया था। मूनिस की रचनाओं को कौन कहे, मूनिस को ही भूला दिया गया—गांधी के सिर्फ चंपारण सत्याग्रह से ही नहीं, बल्कि हिंदी पत्रकारिता और साहित्य की दुनिया से भी। मूनिस मुसलमान होते हुए भी हिंदी के अनन्य सेवक थे। हिंदी-उर्दू की खाई को पाटने के प्रबल हिमायती श्री मूनिस हिंदी-उर्दू के विभाजन को अलगाववादियों की करतूत मानते थे। वह हिंदी के प्रसार के लिए रामायण मँडलियाँ बनाना चाहते थे और स्कूलों को हिंदी के विकास और पुनर्जागरण के केंद्र के रूप में विकसित करना चाहते थे। वह मुस्लिम समुदाय से आनेवाले इकलौते साहित्यकार-पत्रकार हैं, जो बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के पंद्रहवें अध्यक्ष बनाए गए थे। वह ‘देश’ के संपादक मंडल में थे। मूनिस का जन्म 1892 में हुआ था और उनकी मृत्यु 24 दिसंबर, 1949 को हुई। मूनिस सड़सठ वर्ष आन-बान और शान, लेकिन भारी अभाव में जिए।
बिहार में हिंदी पत्रकारिता की नींव और आधारस्तंभ पीर मुहम्मद मूनिस की प्रतिनिधि रचनाओं का यह संकलन उनकी प्रखर सोच और लेखनी से हमारा परिचय कराएगा। बेतिया राज्य के अंतर्गत 50-60 नील की कोठियाँ यूरोपियन गोरों की है और यही लोग विशेषकर राज्य के गाँवों के ठेकेदार हैं। ये लोग अपने अधीन प्रजाओं के खेतों में से बिगहा तीन कट्ठा जमीन अपने लिए रखते हैं। इस “तीन कठिया लगान” की रीति को वहाँ की प्रजा नाजायज समझती है। इसके अतिरिक्त वहाँ पर कई प्रकार के बेगार, अमही, कटहरी (आम और कटहल के वृक्ष पर टैक्स) फगूनही (फागुन के उत्सव पर का टैक्स) हथीमही (साहिब बहादुर के हाथी खरीदने का टैक्स)मोटर-गाड़ी खरीदने का टैक्स आदि अनेकों प्रकार के टैक्स कोठी के अधीन प्रजाओं से जबरदस्ती वसूल किए जाते हैं, जिस को वहाँ की प्रजा ने अदालत में सैकड़ों बार कहा है और इन नाजायज टैक्सों के विरुद्ध अपनी पुकार भी मचाई है पर, किसकी कौन सुनता है। नक्कारखाने में तूती की आवाज की भाँति, गूँज कर ही रह जाती है।
दुनिया क्या है-एक तिलिस्म खाना है। यहाँ बाप, बेटा, भाई, भतीजा, दोस्त-किसका कौन है? जब तक साँस है, तब तक सब साथी हैं; फिर कोई दो बूँद आँसू भी नहीं टपकाता। इधर लाश फूँकी, इधर अपने काम-धंधे की धुन सवार हुई। बेटा पहले ही बाँस से खोपड़ी को फोड़ देता है, स्त्रा् तुम्हारी पहनाई हुई चूड़ियाँ तोड़कर शोक करने के कर्तव्य से छुटकारा पा जाती हैं! चलो छुट्टी हुई! यार-दोस्त हँस-हँसकर दसवीं-तेरहवीं की दावतें उड़ाते हैं! कोई किसी का नहीं होता। यदि ये लोग तुम्हारे होते, तो धनुष-बाण लेकर सामने न आते। तुम्हारा तो धर्म है कि संसार को नाश होने वाला और इन वीरों को घोर शत्रु समझकर धार पर डट जाओ। धनुष का चिल्ला चढ़ा लो, तीर चुटकी से निकलो।”

—इसी पुस्तक से

The Author

Shrikant

जन्म : आरा (भोजपुर)। बिहार में सामाजिक परिवर्तन की क्रांतिकारी धारा से जुड़े श्रीकांत ने कुछ चर्चित कहानियाँ लिखीं। राजनीति और सामाजिक बदलाव पर कार्य करने में विशेष दिलचस्पी। बिहार में चुनाव : जाति, बूथ लूट और हिंसा, सामाजिक परिवर्तन और दलित आंदोलन पर पुस्तकें प्रकाशित। चर्चित नाटक ‘मैं बिहार हूँ’ के लेखक। ‘राजेंद्र माथुर पुरस्कार’ से सम्मानित। संप्रति : ‘दैनिक हिंदुस्तान’ पटना में विशेष संवाददाता।

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