Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Parivarik Jeevan Ke Vyangya   

₹200

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Giriraj Sharan
Features
  • ISBN : 9788173151538
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Giriraj Sharan
  • 9788173151538
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2011
  • 144
  • Hard Cover

Description

हमारे परिचितों में भाँति-भाँति के लोग हैं। पारिवारिक जीवन के बारे में इन सबके अनुभव भी अलग-अलग हैं। इन सबकी भीड़ में एक सज्जन हैं, वे प्राय: कहा करते हैं कि पारिवारिक जीवन तो बृज के लड्डुओं जैसा होता है, जो खाए वह भी पछताए और जो न खाए वह भी पछताए। हम यह बात पूरे विश्वास से तो नहीं कह सकते कि दोनों स्थितियों में पछतानेवाली बात क्यों है, फिर भी लगता है, हमारे मित्र की बात में कुछ-न-कुछ सच्चाई अवश्य है। क्योंकि बूर के लड्डुओं में लागत अधिक आती है, आनंद कम; बृज के लड्डुओं की एक विशेषता और भी है, वे जरा-सी ठेस लगते ही बिखर जाते हैं; जैसे परिवार को कोई हलका-भारी झटका तोड़ देता है या बिखेर देता है।
हमारे मित्र का एक विचार यह था कि जो परिवर्तनशील नहीं है, वह परिवार के योग्य नहीं है। परिवार के लिए आदमी का गतिशील अथवा प्रगतिशील होना इतना आवश्यक नहीं है, जितना परिवर्तनशील होना आवश्यक है।
जो भी हो, यह तो हमारे मित्र का विचार है। जरूरी नहीं कि सब आदमी इससे सहमत हों। पर जहाँ तक अपना सवाल है, परिवार के विषय में हमारा अनुभव कुछ ‘यों ही-सा’ है। इसमें दोष हमारा है या हमारे परिवार का, यह तो हम नहीं कह सकते, लेकिन अपने मित्र की इस बात पर कि ‘पारिवारिक जीवन तो बूर के लड्डुओं जैसा होता है, जो खाए वह भी पछताए और जो न खाए वह भी पछताए’, हम सोचते हैं कि क्यों न इसपर एक अदद रिसर्च कर डालें; ताकि आप जैसे बहुत-सों का भला हो।
परिवार में खटकते बरतनों और बजते रिश्तों पर खट्टी-मीठी चोट करते हुए ये व्यंग्य आपके लिए प्रस्तुत हैं।

The Author

Giriraj Sharan

जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्‍ट‌ि से प्रकाशित उनके विशिष्‍ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्‍त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW