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Author Vinayak Damodar Savarkar
Features
  • ISBN : 9788173156861
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vinayak Damodar Savarkar
  • 9788173156861
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2021
  • 232
  • Hard Cover

Description

नहीं-नहीं, राष्‍ट्र कभी मरते नहीं । ईश्‍वर पीड़ितों का रक्षक है । उसने मनुष्य को स्वाधीनता में साँस लेने के लिए उत्पन्न किया है । यदि तुम ठान लो तो समझो, देश स्वतंत्र हो ही गया । इससे अधिक प्रोत्साहक राष्‍ट्रमंत्र अन्य कौन सा है? एक बार मनुष्य ने ठान लिया कि मैं स्वाधीनता, स्वदेश और मानवता का परम भक्‍त हूँ फिर उसे स्वाधीनता, स्वदेश और मानवता के लिए लड़ना ही होगा, निरंतर आजीवन लड़ना होगा ।''
'' मेरी इटली की जनसंख्या दो करोड़ है । यदि इन दो करोड़ लोगों ने मन में निश्‍चय किया तो विदेशियों के वे पचहत्तर हजार सिपाही उन्हें दबा थोड़े सकते हैं! दो करोड़ लोग और उनका सहायक ईश्‍वर! ऐसी स्थिति में इटली पलक झपकते ही विदेशी सत्ता को चूर-चूर कर देगी । ''

 — जोसेफ मैझिनी

The Author

Vinayak Damodar Savarkar

जन्म : 28 मई, 1883 को महाराष्‍ट्र के नासिक जिले के ग्राम भगूर में ।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा गाँव से प्राप्‍त करने के बाद वर्ष 1905 में नासिक से बी.ए. ।
1 जून, 1906 को इंग्लैंड के लिए रवाना । इंडिया हाउस, लंदन में रहते हुए अनेक लेख व कविताएँ लिखीं । 1907 में ' 1857 का स्वातंत्र्य समर ' ग्रंथ लिखना शुरू किया । प्रथम भारतीय नागरिक जिन पर हेग के अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया । प्रथम क्रांतिकारी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई । प्रथम साहित्यकार, जिन्होंने लेखनी और कागज से वंचित होने पर भी अंडमान जेल की दीवारों पर कीलों, काँटों और यहाँ तक कि नाखूनों से विपुल साहित्य का सृजन किया और ऐसी सहस्रों पंक्‍त‌ियों को वर्षों तक कंठस्थ कराकर अपने सहबंदियो द्वारा देशवासियों तक पहुँचाया । प्रथम भारतीय लेखक, जिनकी पुस्तकें-मुद्रित व प्रकाशित होने से पूर्व ही-दो-दो सरकारों ने जब्‍त कीं । वे जितने बड़े क्रांतिकारी उतने ही बड़े साहित्यकार भी थे । अंडमान एवं रत्‍नगिरि की काल कोठरी में रहकर ' कमला ', ' गोमांतक ' एवं ' विरहोच्छ‍्वास ' और ' हिंदुत्व ', ' हिंदू पदपादशाही ', ' उ: श्राप ', ' उत्तरक्रिया ', ' संन्यस्त खड्ग ' आदि ग्रंथ लिखे ।
महाप्रयाण : 26 फरवरी, 1966 को ।

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