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Manav Charitra Ke Vyangya   

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Author Giriraj Sharan
Features
  • ISBN : 9789352664054
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Giriraj Sharan
  • 9789352664054
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 142
  • Hard Cover

Description

अभी- अभी मेरे- सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है । वह बालिश्त- भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली- सी टहनी से चिपका हुआ है । मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ । यह क्या? कभी उसके शरीर का हर हिस्सा लाल हो जाता है, कभी हरा, कभी पीला । यह हर पल रंग कैसे बदल लेता है? मैं अपने आप से यह प्रश्‍न बार-बार पूछता हूँ ।
भीतर से आई कोई अजनबी-सी आवाज मुझे चौंका देती है । गिरगिट ठीक ऐसे ही रंग बदलता है जैसे आदमी । बस, अंतर इतना है कि गिरगिट बेचारे के रंग दिखाई दे जाते हैं, आदमी के रंग दिखाई नहीं देते । आदमी से अधिक ' टेक्नीकलर ' चीज तो दुनिया में कोई है नहीं । आदमी तो वह प्राणी है जो रंग तो बदलता है पर गिरगिट की भांति उसका प्रदर्शन नहीं करता । गिरगिट के रंगों से आदमी को कोई खतरा नहीं, पर आदमी के रंग से? ?
गिरगिट के भीतर जितने रंग हैं और जितने रंग वह बदलता है, वे कम-से- कम सब गिरगिटों में एक जैसे होते हैं पर आदमी और आदमी के रंगों में तो जमीन- आसमान का अंतर है । भगवानदत्त के जो रंग-ढंग हैं वे ईश्‍वरप्रसाद के नहीं और ईश्‍वरप्रसाद के जो रंग-ढंग हैं वे परमात्माशरण के नहीं, और परमात्माशरण के जो हाव- भाव हैं वे ब्रह्मानंद के नहीं । कम-से-कम एक गिरगिट और दूसरा गिरगिट अपनी अंतरात्मा में तो एक है । गिरगिट-गिरगिट में समानता और आदमी- आदमी में असमानता ।
मानव चरित्र के गिरते ग्राफ पर तीखी चोट करने वाले ये व्यंग्य आदमी के चेहरे को बेनकाब करते हैं ।

The Author

Giriraj Sharan

जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्‍ट‌ि से प्रकाशित उनके विशिष्‍ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्‍त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।

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