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Loktantra Ki Maya   

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Author Arvind Mohan
Features
  • ISBN : 9789386231994
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Arvind Mohan
  • 9789386231994
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2017
  • 216
  • Hard Cover

Description

मंडल, कमंडल और भूमंडलीकरण ने पिछले ढाई-तीन दशकों में मुल्क की राजनीति और समाज में तेज बदलाव किए हैं। ये बदलाव धनात्मक हैं और ऋणात्मक भी। इनसे शायद ही कोई अछूता बचा हो। राजनीति में पिछड़ों का निर्णयात्मक बढ़त लेना, दलितों और आदिवासियों का दमदार ढंग से उभरना, महिला शक्ति का अपनी उपस्थिति दर्ज कराना, हिंदी का बिना सरकारी समर्थन के उभरना, क्षेत्रीय राजनीति का सत्ता के विमर्श में प्रभावी होना जैसी अनेक प्रवृत्तियाँ अगर हमारे लोकतंत्र की ताकत को बढ़ाती हैं तो जाति, संप्रदाय, व्यक्तिवाद, परिवारवाद और राजनीति में धन तथा बाहुबल का जोर बढ़ना काफी नुकसान पहुँचा रहा है। 
इस दौर की राजनीति और समाज पर पैनी नजर रखनेवाले एक पत्रकार के आलेखों से बनी यह पुस्तक इन्हीं प्रवृत्तियों को समझने-समझाने के साथ इस बात को रेखांकित करती है कि इन सबमें जीत लोकतंत्र की हुई है और उसमें बाकी बुराइयों को स्वयं दूर करने की क्षमता भी है। अगर देश के सबसे कमजोर और पिछड़ी जमातों की आस्था लोकतंत्र में बढ़ी है तो यह सरकार बदलने से लेकर बाकी कमजोरियों को दूर करने के लिए आवश्यक ताकत और ऊर्जा भी जुटा लेगी।

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अनुक्रम

लेखकीय—5

लोकतंत्र का शुल पक्ष

1. जीवंत लोकतंत्र, असफल उफान—17

2. हिंदी क्षेत्र में दलित उभार—28

3. अब निकले आदिवासी—32

4. वैश्विक कट्टरपन और भारतीय मुसलमान—38

5. सामाजिक ऊर्जा का प्रस्फोट —45

6. आंदोलन बनती चेतना—52

7. भाषायी सूचना क्रांति—58

8. हिंदी का बल—67

9. जवान हुई पत्रकारिता—73

10. जनसंया का बल—78

11. लोकतंत्र का बल—83

लोकतंत्र का कृष्ण पक्ष

1. मध्यकालीन मूल्यों की वापसी—89

2. एक मुद्दा राजनीति का संकट—98

3. भूमंडलीकरण और दो ध्रुवीय राजनीति—106

4. कमजोरों से मुँह मोड़ती राजनीति—112

5. धुँधलके से अँधियारे की ओर—117

6. जातिवादी राजनीति का अखाड़ा—122

7. बिहार और जातिवाद—128

8. मायावी पूँजीवाद—134

9. दिल्ली ही यों—139

10. मंत्रालयों की साँप-सीढ़ी—142

11. अपने-अपने हिस्से का काम करें—146

12. ‘बीमारू’ प्रदेश या भीरू प्रदेश?—150

13. वाटर-वाटर के खेल में—153

14. हाशिए पर वामपंथ—158

15. सियासी सुविधा बनाम वैचारिक दुविधा—162

16. ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का अवसान—167

17. हिंदी सिनेमा में धूमिल होती राजनैतिक सोच—171

18. बेरोजगारी से बेपरवाही—176

19. मजदूरों का पलायन—184

20. महानगरों में मजदूरों की मंडियाँ—190

21. भ्रष्टाचार : किसकी मार, किस पर मार—194

22. भाजपाई मीडिया मैनेजमेंट —199

23. फंड मैनेजमेंट—210

The Author

Arvind Mohan

अरविन्द  मोहन  जनसत्ता, हिंदुस्तान, इंडिया टुडे, अमर उजाला, सी.एस.डी.एस. और ए.बी.पी. न्यूज से जुड़े रहे हैं। बाहर भी उन्होंने लिखा और टीका-टिप्पणियाँ की हैं। इतना ही नहीं, कई बार नियमित पत्रकारिता से ब्रेक लेकर कुछ गंभीर काम किए हैं, जिनमें पंजाब जानेवाले बिहारी मजदूरों की स्थिति का अध्ययन, देश की पारंपरिक जल संचय प्रणालियों पर पुस्तक का संपादन और गांधी के चंपारन सत्याग्रह पर पुस्तक शामिल है, जो जल्दी ही प्रकाश में आनेवाली है। उन्होंने करीब एक दर्जन पुस्तकों का लेखन-संपादन किया है और इतनी ही चर्चित पुस्तकों का अनुवाद। कई पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित किए गए हैं। अरविन्द दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिल्लिया समेत कई संस्थानों में मीडिया अध्यापन भी करते हैं। अभी वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व-विद्यालय के अतिथि लेखक और ए.बी.पी. न्यूज के राजनैतिक विश्लेषक हैं।

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