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Kaun Kutil Khal Kami   

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Author Prem Janmejay
Features
  • ISBN : 9789386870070
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Prem Janmejay
  • 9789386870070
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 160
  • Hard Cover

Description

बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उन पर दिशायुक्‍त प्रहार करने की। पिछले दस वर्षों में पूँजी के बढ़ते प्रभाव, बाजारवाद, उपभोक्‍तावाद एवं बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों की ‘संस्कृति’ के भारतीय परिवेश में चमकदार प्रवेश ने हमारी मौलिकता का हनन किया है। दिल्ली की जिन गलियों को कभी शायर छोड़कर नहीं जाना चाहता था अब वही गलियाँ मॉल-संस्कृति की शोभा बढ़ाने के लिए दिल्ली को छोड़कर जा रही हैं। अचानक दूसरों का कबाड़ हमारी सुंदरता और हमारी सुंदरता दूसरों का कबाड़ बन रही है। सौंदर्यीकरण के नाम पर, चाहे वो भगवान् का हो या शहर का, मूल समस्याओं को दरकिनार किया जा रहा है। धन के बल पर आप किसी भी राष्‍ट्र को श्मशान में बदलने और अपने श्मशान को मॉल की तरह चमकाकर बेचने की ताकत रखते हैं।
नंगई की मार्केटिंग का धंधा जोरों पर चल रहा है और साहित्य में भी ऐसे धंधेबाजों का समुचित विकास हो रहा है। कुटिल-खल-कामी बनने का बाजार गरम है। एक महत्त्वपूर्ण प्रतियोगिता चल रही है—तेरी कमीज मेरी कमीज से इतनी काली कैसे? इस क्षेत्र में जो जितना काला है उसका जीवन उतना ही उजला है। कुटिल-खलकामी होना जीवन में सफलता की महत्त्वपूर्ण कुंजी है। इस कुंजी को प्राप्‍त करते ही समृद्धि के समस्त ताले खुल जाते हैं।
व्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा माननेवाले प्रेम जनमेजय ने हिंदी व्यंग्य को सही दिशा देने में सार्थक भूमिका निभाई है। परंपरागत विषयों से हटकर प्रेम जनमेजय ने समाज में व्याप्‍त आर्थिक विसंगतियों तथा सांस्कृतिक प्रदूषण को चित्रित किया है। प्रस्तुत संकलन हिंदी व्यंग्य साहित्य में बढ़ती अराजक स्थिति से लड़ने का एक कारगर हथियार सिद्ध होगा।

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विषय-सूची

1. इक श्मशान बने न्यारा — Pgs. 13

2. कौन कुटिल खल कामी — Pgs. 20

3. हमारे नापिताचार्य — Pgs. 25

4. देख, खेल का खेल — Pgs. 30

5. चारा और बेचारा — Pgs. 32

6. बिन मोबाइल सब — Pgs.  36

7. प्रवासी से प्रेम — Pgs. 43

8. पुरस्कारं देहि! — Pgs. 48

9. अध्यक्षस्य प्रथम दिवसे — Pgs. 55

10. माथे की बिंदी — Pgs. 60

11. मौसमे-आँधी — Pgs. 65

12. ये पीडि़त जनम-जनम के — Pgs. 69

13. एक्सचेंज ऑफर — Pgs. 73

14. अरे, सुन ओ साँप! — Pgs. 77

15. रहिए अब ऐसी जगह — Pgs. 81

16. एक अनार के कई बीमार — Pgs. 85

17. सुन बे प्याज! — Pgs. 88

18. ...तो पागल है — Pgs. 92

19. एक और स्वच्छ प्रधानमंत्री — Pgs. 95

20. अथ रावण अवतार कथा — Pgs. 98

21. मैया, मोही विदेस बहुत भायो — Pgs. 101

22. जुगाड़ संस्कृति — Pgs. 105

23. हिंदी का कंप्यूटर  — Pgs. 110

24. सुन बे रक्तचाप! — Pgs. 115

25. गीत का फिल्मी होना और फिल्म का — Pgs. 119

26. कन्या-रत्न का दर्द — Pgs. 124

27. राम, पढ़ मत, मत पढ़ — Pgs. 128

28. हिंदी-हिंदी एवरीवेयर — Pgs. 133

29. ब्लू आई बसें—इन्हें बंद मत करना मेरी सरकार — Pgs. 138

30. फूल और पत्थर का देश — Pgs. 141

31. होलियाने अवार्ड — Pgs. 144

32. कैसी-कैसी होली खेलत — Pgs. 152

The Author

Prem Janmejay

जन्म : 18 मार्च, 1949, इलाहाबाद (उ.प्र.)।
प्रकाशित कृतियाँ : ग्यारह लोकप्रिय व्यंग्य संग्रह; व्यंग्य नाटक ‘सीता अपहरण केस’ का अनेक शहरों में विभिन्न नाट्य संस्थाओं द्वारा सफल मंचन। पिछले नौ वर्ष से व्यंग्य पत्रिका ‘व्यंग्य यात्रा’ के संपादक एवं प्रकाशक। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी हास्य व्यंग्य संकलन’ में श्री श्रीलाल शुक्ल के साथ सहयोगी संपादक। दो समीक्षात्मक पुस्तकें, बाल-साहित्य की तीन पुस्तकें व नव-साक्षरों के लिए आठ रेडियो नाटकों का लेखन। पुरस्कार : ‘पं. बृजलाल द्विवेदी साहित्य पत्रकारिता सम्मान’, ‘शिवकुमार शास्त्री व्यंग्य सम्मान’, ‘आचार्य निरंजननाथ सम्मान’, ‘व्यंग्यश्री सम्मान’, ‘हरिशंकर परसाई स्मृति पुरस्कार’, हिंदी अकादमी साहित्यकार सम्मान’। ‘हिंदी चेतना’, ‘व्यंग्य तरंग’, ‘कल्पांत’ एवं ‘यू.एस.एम पत्रिका’ द्वारा प्रेम जनमेजय पर केंद्रित अंक प्रकाशित।
संप्रति : एसोसिएट प्रोफेसर, कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय।

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