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Jo Ghar Phoonke Aapna…   

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Author Arunendra Nath Verma
Features
  • ISBN : 9789384343552
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Arunendra Nath Verma
  • 9789384343552
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2021
  • 216
  • Hard Cover

Description

पुलिसवाले ने अपनी दकनी उर्दू में कहा, ‘‘आप लोकां बड़े ऊँचे हाकिमान हैं तो इस प्राइवेट कार में क्या करता मियाँ? पाइलट लोकां तो सरकारी गाड़ी में तकरीबन घंटा भर पहले गए। अब जरा तकलीफ करके नीचे उतर आओ। तुम्हारी पूरी दास्तान फुरसत से थाने में सुनेंगे।’’ मैंने बहुत समझाया, पर बात इस मुद्दे पर खत्म हुई कि मैं जो अपने को प्रेसिडेंट साहेब का पायलट बता रहा था, अपना आई.डी. कार्ड भी नहीं दिखा पा रहा था। फिर उसने भाई साहेब से पूछा, ‘‘और हजरत, आप तो जरूर प्राइम मिनिस्टर साहेब के खासुलखास ड्राइवर होंगे?’’ मैंने आवाज ऊँची करके कहा, ‘‘अपने सीनियर ऑफिसर से तुरंत वॉकी-टॉकी पर बात कराइए, वरना मेरी नौकरी तो जाएगी, पर आपकी भी बचेगी नहीं।’’ नतीजा उलटा निकला। त्योरियाँ चढ़ाकर वह बोला, ‘‘अरे, मेरे को धमकी देते? जाने दो प्रेसिडेंट साहेब को, फिर मैं देखता मियाँ कि तुम फाख्ता उड़ाते कि हवाई जहाज।’’ 
जीवन और मृत्यु के खेल से गुजर जाने के बाद इस उड़ान का अंत भी सदा की तरह सकुशल रूप से हो गया। राष्ट्रपति महोदय के जाने के बाद हमारे कप्तान ने पीठ ठोंकी। मैंने पूछा, ‘‘सर, क्या ईनाम दे रहे हैं आप मुझको?’’ अपनी घनी मूँछों के नीचे से मुसकराते हुए उन्होंने कहा, ‘‘बस किसी को बताऊँगा नहीं कि महामहिम राष्ट्रपतिजी हैदराबाद एयरपोर्ट पर खड़े होकर आज महामहिम फ्लाइट लेफ्टिनेंट वर्मा की प्रतीक्षा करने के दंड से बच गए।’’ 
—इसी उपन्यास से

 

The Author

Arunendra Nath Verma

जन्म : 5 अप्रैल 1945, पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर नगर में।
शिक्षा : एम.बी.ए. (मद्रास वि.वि.), एल-एल.बी. (दिल्ली वि.वि.), डिफेंस सर्विसेज स्टॉफ कॉलेज से रक्षा अध्ययन में स्नातकोत्तर। कमीशन मिलने के समय प्रथम स्थान के लिए ‘वायुसेनाध्यक्ष पदक’ प्रदत्त।
कृतित्व : सन् 1965 से 1987 तक भारतीय वायुसेना की फ्लाइंग शाखा में सेवारत रहे। सन् 1970 से 76 और पुनः 1980 से 82 के दौरान वायुसेना मुख्यालय संचार स्क्वाड्रन में अतिविशिष्ट व्यक्तियों की उड़ानों पर कार्यरत रहे। सन् 1987 में विंग कमांडर पद से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण के बाद नोएडा में उद्योगी रहे। सन् 2012 से हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पूर्णकालिक लेखन।
सन् 2015 में अंग्रेजी उपन्यास ‘दि लूपहोल’ प्रकाशित। हिंदी में कहानी, हास्य-व्यंग्य, यात्रा-वृत्तांत आदि विधाओं में सतत लेखन। पत्र-पत्रिकाओं रचनाएँ प्रकाशित। ‘पाञ्चजन्य’ में नियमित रूप से तीन साल तक ‘व्यंग्यबाण स्तंभ’ का प्रकाशन।
यात्रा-वृत्तांतों का संकलन ‘मुट्ठी भर सैलानीपन’ एवं कहानी संकलन ‘इंद्रधनुषी जाल में एक जलपरी’ शीघ्र प्रकाश्य।

 

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