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Jeevan Ke Mahan Rahasya   

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Author Sirshree
Features
  • ISBN : 9789350480618
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Sirshree
  • 9789350480618
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2012
  • 152
  • Hard Cover

Description

‘वर्तमान’ का क्षण सत्य है। हम सबको वर्तमान में रहना सीख लेना चाहिए। वर्तमान में ही सही कर्म किया जा सकता है। वर्तमान से ही भविष्य बदला जा सकता है। वर्तमान ही अकल का ताला खोलता है। अकल यानी जहाँ कल नहीं है (अ-कल)। बीता हुआ कल और आनेवाला कल, अकल के साथ नहीं है। हमें भी अकल का ताला खोलकर जीवन का महान् रहस्य, महाजीवन का नियम जान लेना चाहिए।
प्रस्तुत पुस्तक में जीवन का महान् रहस्य बड़े विस्तार से समझाया गया है। इस रहस्य को याद रखने के लिए हाथ की पाँच अँगुलियों पर इसे बिठाया गया है। आप इसे चलते-फिरते, काम करते, अँगुलियों के सहारे याद रखकर इस्तेमाल कर सकते हैं। जब भी आपके सामने कोई परेशानी आए तो अपने आप से पूछें, ‘मैं इस वक्त कौन सी अँगुली का सहारा लूँ? कौन सी अँगुली का ज्ञान इस्तेमाल करूँ?’ आपको तुरंत जवाब मिल जाएगा।
इतना ही नहीं, इसमें महाजीवन का एक अटूट और अटल नियम दिया गया है। यह नियम जानना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। फिर वह चाहे कंपनी का मालिक हो या नौकर, कॉलेज का विद्यार्थी हो या टीचर अथवा घर का सदस्य हो या चौकीदार। हर इनसान इस नियम को जानकर अपना जीवन तनाव-मुक्त कर सकता है।
इस पुस्तक के द्वारा जीवन के महान् रहस्य को जानकर आप अपने तथा औरों के जीवन को, साथ ही वर्तमान को बेहतर बना सकते हैं।

The Author

Sirshree

तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्‍त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्‍त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्‍त है।

सरश्री ने दो हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सत्तर से अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनूदित हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं।

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