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Jaise Udi Jahaj Ko Panchhi   

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Author Mridula Sinha
Features
  • ISBN : 818814035X
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Mridula Sinha
  • 818814035X
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2012
  • 144
  • Hard Cover

Description

आपका चेहरा लाल देखकर फूला न समा रहा था। पर मुझे देख आपका मुँह क्यों सूज गया, भैया? मैं पोथी पढ़ा-लिखा तो नहीं, जानवर तथा चिड़िया की बोली, बादल-बिजली का रंग-ढंग, फसल की सेहत सब पढ़-समझ लेता हूँ। आदमी का चेहरा भी पढ़ लेता हूँ। आप किताबों के बीच रहते हैं न! मैं तो आदमी और इन गाय, भैंस, बैल, कुत्ता और तोता से घिरा रहता हूँ। बादल-बिजली के संग-संग उठता-बैठता हूँ।
—बात का गोला
उन शेर दिलों का गिड़गिड़ाना और उसका एहसानमंद होना कहीं घाव बनकर टीस रहा है उसके मन में। वयस कम है। वयस्क होने की दहलीज पर प्रथम चरण रखने ही वाला था कि वोट की राजनीति के दरिंदों ने उसके दिल पर ऐसी चोट कर दी कि कभी घाव न भरेगा।
—जुनून और जज्बात
अमेरिकन माता-पिता को अपनी संतान के संग-साथ के लिए तरसते कई युग बीत गए। हमारे यहाँ तो अभी इस तरस की शुरुआत ही हुई है। आनेवाले समय में तुम्हारे ड्राइंगरूम की दीवार पर सजी श्रवणकुमार की पेंटिंग का महत्त्व फिर हिंदुस्तान में भी बढ़ाने की आवश्यकता समझी जाएगी।
—पेंटिंग के बहाने
सुबह-सुबह ही कबूतरों के साथ और चिड़ियाँ सब भी आ जाती हैं। छोटे-छोटे माटी के सरोपा में पानी रख देती हूँ। एक-दो घूँट ही पी पाती हैं। चिड़ियों के उसपर बैठने से वे सरोपाएँ उलट जाती हैं। यह देखकर मुझे बहुत दु:ख होता है। तुम्हारा यह चमकौआ हार बेचकर क्या इतना पैसा मिलेगा कि मैं एक बड़ा परात खरीद सकूँ? सब चिड़ियाँ भी एक साथ पानी पी लें।
—बलेसर माई का तालाब

The Author

Mridula Sinha

मृदुला सिन्हा 
27 नवंबर, 1942 (विवाह पंचमी), छपरा गाँव (बिहार) के एक मध्यम परिवार में जन्म। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतान। बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम, रिक्शा पर सवारी, आठ वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी से यात्रा, पति के मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की सवारी। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। 1977 में पहली कहानी कादंबिनी' पत्रिका में छपी। तब से लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लिखती रहीं। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघरानों की भी। रधिया की कहानी है तो रजिया और मैरी की भी। लेखनी ने सीता, सावित्री, मंदोदरी के जीवन को खंगाला है, उनमें से आधुनिक बेटियों के लिए जीवन-संबल हूँढ़ा है तो जल, थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनियों की गाथाएँ भी हैं।
लोकसंस्कारों और लोकसाहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं।

 

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