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Insaniyat Ke Funde

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Author N. Raghuraman
Features
  • ISBN : 9789350484746
  • Language : Hindi
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  • Kindle Store

More Information

  • N. Raghuraman
  • 9789350484746
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2016
  • 160
  • Hard Cover
  • 330 Grams

Description

आज हर कोई औरों से भिन्न होना चाहता है। अच्छा मनुष्य बनना अलग बात है, क्योंकि अच्छे लोगों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। अच्छे लोगों के कम होते जानेवाली दुनिया में अच्छा होना सचमुच अलग बात है। इसलिए अच्छे बनिए। कुछ हटकर अपना जीवन जिएँ और मानवता और इनसानियत के नए मुकाम हासिल करें।
इस पुस्तक में बताए कुछ फंडे हैं—
बुजुर्ग हमारी संपत्ति हैं या जिम्मेदारी, इसका फैसला खुद हमें ही लेना होगा। यदि नई पीढ़ी इन अनुभवी लोगों को अकेले में जीने-मरने के लिए छोड़ती है तो यह उसकी निरी मूर्खता है। जब हम छोटे थे तो वे हमारी संपत्ति थे, फिर बड़े होने पर वे हमारे लिए भार कैसे बन सकते हैं?
यदि आप मकान को घर बनाना चाहते हैं तो ईंट-गारे से बनी इस इमारत में अपनी भावनाओं का भी थोड़ा निवेश करें।
भवन की दीवारों को स्मृतियों की अदृश्य तसवीरों से सजाएँ। फिर देखिए, भवन खुले दिल से आपको अपनाएगा।
अगर आपके भीतर समाज की बेहतरी के लिए काम करने का जज्बा है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जेल में हैं या जरूरतमंदों के बीच; आप कहीं भी रहते हुए ऐसा कर सकते हैं।
अपने विनम्र व सुखद व्यवहार से आप दुनियाभर में दोस्त बना सकते हैं। इन दोस्तों की फौज समय आने पर आपकी मदद ही करेगी।
यदि आप समाज का हित किसी भी माध्यम से करना चाहते हैं तो कोशिश कीजिए कि समाज के अंतिम व्यक्‍ति को उसका लाभ मिले।

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अनुक्रम 33. दूसरों को भी साथ लेकर आगे बढें — Pgs. 87
दो शब्द — Pgs. 5 34. सुविधा के लिए होते हैं नियम-कायदे — Pgs. 89
आभार — Pgs. 7 35. जाने-अनजाने कुछ अच्छा काम करें — Pgs. 91
1. महान् व्यक्ति अच्छे इनसान भी होते हैं — Pgs. 13 36. शिष्टाचार जिंदगी भी बदल सकता है — Pgs. 93
2. कभी-कभी अपने बारे में भी अच्छा महसूस कीजिए — Pgs. 16 37. न सही दोस्त किसी का सच्चा सहारा बनें — Pgs. 95
3. इनसानियत हमेशा जीतती है — Pgs. 19 38. नेकी का फल हमें जरूर मिलता है — Pgs. 97
4. जब आप किसी अनजान की सहायता करते हैं तो वह सच्ची ‘मदद’ होती है — Pgs. 22 39. शालीन बर्ताव का पाएँ अच्छा प्रतिफल — Pgs. 99
5. धारणाओं से बचना हमेशा मुश्किल होता है — Pgs. 24 40. सच्चे मन से माँगने पर मिल ही जाती है मदद — Pgs. 101
6. रिश्ते की बुनियाद पर टिका होता है परिवार — Pgs. 27 41. धन के बगैर भी हो सकती है समाजसेवा — Pgs. 103
7. कुछ ख्वाब अलग ढंग से होते हैं साकार — Pgs. 30 42. सिलवटों वाली पैकिंग में होते हैं यादगार तोहफे — Pgs. 105
8. समझें भावनाओं से जुड़े संकेतों को — Pgs. 32 43. परोपकार सिर्फ पैसों से ही नहीं होता — Pgs. 107
9. क्या आप अपनी सोच को अमलीजामा पहनाते हैं? — Pgs. 34 44. बेईमानी से कमाई चीज रुकती नहीं — Pgs. 109
10. लक्ष्य को सामने रखकर करें परोपकार — Pgs. 37 45. नैतिक मूल्य या भौतिक सुख : चयन आपका — Pgs. 111
11. परोपकार ऐसा हो जिसका असर लंबे समय तक बना रहे — Pgs. 40 46. पार्टियाँ मनाने का अलग हो अंदाज — Pgs. 113
12. भलाई करने के लिए धन की जरूरत नहीं होती — Pgs. 42 47. कार्मिक चक्र हमेशा पूरा घूमता है — Pgs. 115
13. बुजुर्ग हमारी संपत्ति हैं, बोझ नहीं — Pgs. 44 48. किसी दूसरे की जिंदगी में लाएँ अच्छा बदलाव — Pgs. 117
14. सामाजिक ढाँचे को मजबूत बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी — Pgs. 46 49. कौन सी चीज मकान को घर बनाती है? — Pgs. 119
15. ईमानदारी का मिलता है अच्छा नतीजा — Pgs. 48 50. निःस्वार्थ कर्म आपको दिला सकता है रोटी, कपड़ा और मकान — Pgs. 122
16. अच्छे कामों का मिलता है अच्छा नतीजा — Pgs. 51 51. अपनी उदारता का बखान करना जरूरी नहीं — Pgs. 125
17. पैसे की अहमियत समझने के लिए गरीबों की जिंदगी जीकर देखिए — Pgs. 53 52. दूसरे प्राणियों को भी अपना सहजीवी बनाएँ हम — Pgs. 128
18. केवल धन-संपत्ति से कोई अमीर नहीं हो जाता — Pgs. 56 53. आपके पास है दूसरों की जिंदगी बचाने का हुनर? — Pgs. 131
19. दुर्घटनाओं के बाद ही क्यों समझ में आता है दूसरों का मोल? — Pgs. 58 54. समाज की बेहतरी का काम कहीं से भी किया जा सकता है — Pgs. 134
20. मिशन से किया बिजनेस बहुत कुछ देता है — Pgs. 61 55. त्योहार की खुशी में दूसरों को भी शामिल करें — Pgs. 137
21. मदद समय पर होनी चाहिए, वरना इसकी कोई उपयोगिता नहीं — Pgs. 63 56. अच्छा व्यवहार गैरों को भी दोस्त बनाता है — Pgs. 139
22. दूसरों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाने की अनूठी खुशी — Pgs. 65 57. दयाभाव व्यक्ति को मजबूत बनाता है — Pgs. 141
23. हरसंभव बेदाग रहे हमारा नैतिक दामन  — Pgs. 67 58. धर्म और कर्म के बीच उचित भेद जरूरी — Pgs. 143
24. जिद करने से ही बदलती है दुनिया — Pgs. 69 59. गरीबों का मददगार बिजनेस मॉडल बनाएँ — Pgs. 145
25. दूसरों को अपना कुछ समय देकर पाएँ ख्याति — Pgs. 71 60. सहृदयी ही करते हैं निःस्वार्थ भाव से सेवा — Pgs. 147
26. भरोसा करने से बनेगा भरोसेमंद समाज — Pgs. 73 61. उद्यम ऐसा हो, जो दूसरों का पेट भर सके — Pgs. 149
27. अच्छे काम को चिल्लर कहकर खारिज न करें — Pgs. 75 62. ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का पहचानें मोल — Pgs. 151
28. जिंदगी को कभी दिल की आँखों से देखें — Pgs. 77 63. मिशन ऐसा हो जो लोकप्रिय बनाए — Pgs. 153
29. ड्यूटी से आगे बढ़कर करें काम — Pgs. 79 64. भ्रष्टाचार दूर करने में नई पीढ़ी ही है सक्षम — Pgs. 155
30. व्यवसाय सर्वजन हिताय के लिए हो — Pgs. 81 65. अपनी विपदा से न करें दूसरों का आकलन — Pgs. 157
31. सबसे पहले हम बनें बेहतर इनसान — Pgs. 83 66. लोगों के जरिए ही खड़ा होता है कारोबार — Pgs. 159
32. तकनीक के बजाय इनसान पर करें भरोसा  — Pgs. 85  

The Author

N. Raghuraman

एन. रघुरामन
मुंबई विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट और आई.आई.टी. (सोम) मुंबई के पूर्व छात्र श्री एन. रघुरामन मँजे हुए पत्रकार हैं। 30 वर्ष से अधिक के अपने पत्रकारिता के कॅरियर में वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘डीएनए’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे राष्ट्रीय दैनिकों में संपादक के रूप में काम कर चुके हैं। उनकी निपुण लेखनी से शायद ही कोई विषय बचा होगा, अपराध से लेकर राजनीति और व्यापार-विकास से लेकर सफल उद्यमिता तक सभी विषयों पर उन्होंने सफलतापूर्वक लिखा है। ‘दैनिक भास्कर’ के सभी संस्करणों में प्रकाशित होनेवाला उनका दैनिक स्तंभ ‘मैनेजमेंट फंडा’ देश भर में लोकप्रिय है और तीनों भाषाओं—मराठी, गुजराती व हिंदी—में प्रतिदिन करीब तीन करोड़ पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है। इस स्तंभ की सफलता का कारण इसमें असाधारण कार्य करनेवाले साधारण लोगों की कहानियों का हवाला देते हुए जीवन की सादगी का चित्रण किया जाता है।
श्री रघुरामन ओजस्वी, प्रेरक और प्रभावी वक्ता भी हैं; बहुत सी परिचर्चाओं और परिसंवादों के कुशल संचालक हैं। मानसिक शक्ति का पूरा इस्तेमाल करने तथा व्यक्ति को अपनी क्षमता के अधिकतम इस्तेमाल करने के उनके स्फूर्तिदायक तरीके की बहुत सराहना होती है।
इ-मेल : nraghuraman13@gmail.com

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