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Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav   

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Author JawaharLal Kaul
Features
  • ISBN : 9788173153174
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • JawaharLal Kaul
  • 9788173153174
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2010
  • 262
  • Hard Cover

Description

वैश्‍वीकरण और प्रौद्योगिकी की आँधी में जब राष्‍ट्रीय सीमाएँ टूट रही हों, मूल्य अप्रासंगिक बनते जा रहे हों और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है । अखबार और साबुन बेचने में कोई मौलिक अंतर रह पाएगा, या फिर समाचार और विज्ञापन के बीच सीमा- रेखा भी होगी कि नहीं?
अविश्‍वास, अनास्था और मूल्य- निरपेक्षता के इस संकटकाल में हिंदी भाषा और हिंदी पत्रकारिता से क्या अपेक्षा है और क्या उन उम्मीदों को पूरा करने का सामर्थ्य हिंदी और हिंदी पत्रकारिता में है, जो देश की जनता ने की थीं? इन और ऐसे ही प्रश्‍नों का उत्तर खोजने के प्रयास में यह पुस्तक लिखी गई । लेकिन यह तलाश कहीं बाजार और विश्‍व-ग्राम की गलियों, कहीं प्रौद्योगिकी और अर्थ के रिश्तों, कहीं पत्रकारिता की दिशाहीनता और कहीं अंग्रेजी के फैलते साम्राज्य के बीच होते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ हमारे देश-काल और उसमें हमारी भूमिका के बारे में भी कुछ चौंकानेवाले प्रश्‍न खड़े हो गए हैं ।

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अनुक्रम  
प्रस्ताव — Pgs. 9 राष्ट्रीय पत्र — Pgs. 145
क्यों और कैसे? — Pgs. 9 अपनी पहचान — Pgs. 148
1. प्रौद्योगिकी, व्यापार और वैश्वीकरण — Pgs. 25 मौलिक अंतर — Pgs. 151
पहला वैश्वीकरण — Pgs. 26 भाषानुशासन — Pgs. 153
अगर आज ईसा होते? — Pgs. 29 हिंदी दैनिकों का विस्तार — Pgs. 154
कॉर्पोरेट दर्शन का आधार — Pgs. 31 फैलाव मगर गहराई नहीं — Pgs. 156
लोगों को छोड़कर — Pgs. 33 पत्र का व्यक्तित्व — Pgs. 158
नई सभ्यता का जन्म — Pgs. 35 पत्रिकाओं का हृस — Pgs. 166
विश्वग्राम क्यों? — Pgs. 37 टी.वी. और पत्रिका — Pgs. 169
आवश्यकता नहीं है, तो पैदा करो — Pgs. 40 पाठकीय प्रतिबद्धता — Pgs. 171
पूँजीवाद का भविष्य — Pgs. 42 अधूरा अखबार — Pgs. 177
पिछड़ों की चिंता — Pgs. 44 कमी कहाँ है? — Pgs. 178
1818 एस-स्ट्रीट — Pgs. 45 मालिक और पत्रकार — Pgs. 181
मैक्सिको का प्रयोग — Pgs. 47 पत्रकारिता की दुकानें — Pgs. 184
लहरों पर तैरती दुनिया — Pgs. 48 क्या नहीं है? — Pgs. 186
वर्चस्ववाद का दर्शन — Pgs. 51 पाठकों का विकल्प — Pgs. 189
तीसरी सभ्यता के साधन — Pgs. 54 5. चौराहे से आगे — Pgs. 192
चलो, लेकिन जरा हटकर — Pgs. 55 कठिन डगर है — Pgs. 193
तीसरी लहर का नाटकीय प्रयोग — Pgs. 57 गाँवों की ओर — Pgs. 196
जिनका हल नहीं — Pgs. 59 ट्रस्टीशिप का सिद्धांत — Pgs. 198
सूचना-बाजार और माध्यम — Pgs. 61 इक्कीसवीं शती के प्रश्न — Pgs. 200
2. मेरा, उनका, किनका अखबार? — Pgs. 65 रोजी-रोटी का सवाल — Pgs. 201
केवल व्यापार ही नहीं — Pgs. 68 वैश्वीकरण का स्वभाव — Pgs. 204
यह कैसा उद्योग? — Pgs. 70 नैतिकता का चुनाव — Pgs. 207
मालिक के अधिकार — Pgs. 75 क्या हो? — Pgs. 210
सामाजिक और ऐतिहासिक दायित्व — Pgs. 80 कैसी न हो? — Pgs. 216
मालिक और कॉर्पोरेशन — Pgs. 84 परिशिष्ट
अपनी-अपनी आजादी — Pgs. 88 1. खुल जा सिमसिम, बंद हो जा सिमसिम — Pgs. 225
सत्य या प्रिय — Pgs. 91 2. भारतीय प्रैस परिषद् — Pgs. 227
आचार-संहिता — Pgs. 95 जवाबी शिकायत — Pgs. 229
विकेंद्रीकरण का मिथक — Pgs. 97 जाँच समिति — Pgs. 230
3. भाषा, बाजार और सांस्कृतिक दीनता — Pgs. 100 पी.यू.सी.एल. का उत्तर — Pgs. 230
बाजार की बोली — Pgs. 101 बी.बी. न्यूज की शिकायत पर दुआ का उत्तर — Pgs. 230
भाषा का साम्राज्य — Pgs. 103 शिकायतों पर जाँच समिति का मत — Pgs. 232
उर्दू की राजनीति — Pgs. 105 दूसरी आपत्तियों पर जाँच समिति — Pgs. 233
स्वतंत्र भारत में हिंदी — Pgs. 108 मामले की सुनवाई — Pgs. 235
सरल हिंदी के जटिल संकेत — Pgs. 110 पी.यू.सी.एल. का बयान — Pgs. 235
संवाद के स्तर — Pgs. 112 एडीटर्स गिल्ड का बयान — Pgs. 235
अशोक वाजपेयी की दृष्टि — Pgs. 113 समिति की रपट — Pgs. 236
निर्मल वर्मा का चिंतन — Pgs. 118 मालिक और संपादक — Pgs. 239
यानी हिंदिश — Pgs. 120 समाचार — Pgs. 239
प्रभाष जोशी की चिंता — Pgs. 121 बी.बी. न्यूज — Pgs. 242
सांस्कृतिक ठहराव और राजनीति — Pgs. 125 परिषद् का फैसला — Pgs. 243
अभी हिंदी नहीं — Pgs. 127 3. कौन ढोए दादाजी की पोटली? — Pgs. 244
तमिल और द्रविड़ — Pgs. 128 पहचान का संकट — Pgs. 245
सोनार बांग्ला — Pgs. 131 डाउन मार्केट हिंदी — Pgs. 247
गुण-दोष सार — Pgs. 133 काउ ऐंड डॉग — Pgs. 248
बाजार में भाषा — Pgs. 135 अंधी गली का अंत — Pgs. 251
काश, हिंदी राजभाषा न होती — Pgs. 136 4. आर्य-अनार्य और हिंदी — Pgs. 253
अंग्रेजी का रोना क्यों? — Pgs. 137 विश्व की महान भाषा — Pgs. 258
4. कुछ अपनी भी खबर रख — Pgs. 143 सहायक पुस्तकें — Pgs. 261
प्रतिस्पर्धा कहाँ है? — Pgs. 144  

The Author

JawaharLal Kaul

26 अगस्त, 1937 को जम्मू-कश्मीर के एक सुदूर क्षेत्र में जन्म। श्रीनगर में एम.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की। 
श्रीनगर के ही एक स्कूल में अध्यापक हो गए। तभी हिंदुस्थान समाचार के श्री बालेश्वर अग्रवाल ने अपनी समाचार समिति में उन्हें एक प्रशिक्षु पत्रकार रख लिया। अगले वर्ष अज्ञेयजी ने अपने नए प्रयोग ‘दिनमान’ के लिए उन्हें चुना। दो दशक तक ‘दिनमान’ के साथ काम करने के पश्चात्  ‘जनसत्ता’ दैनिक में श्री प्रभाष जोशी के सहयोगी बने। 
80 वर्ष की उम्र में भी उनका लिखना जारी है। उनका मानना है कि जब तक व्यक्ति जीवित है, उसके सोचने पर पूर्ण विराम तो नहीं लगता। सोचने पर नहीं लगता तो कहने-लिखने पर क्यों लगेगा? लिखना जीवन का लक्षण है, उसकी प्रासंगिकता है। अपनी पुस्तक ‘हिंदी पत्रकारिता का बाजार भाव’ में वे लिखते हैं कि पत्रकारिता अब एक ऐसा उद्योग हो गया है, जहाँ प्रमुख संचालक विज्ञापनदाता हो गया है, जो न तो पाठक है, न संपादक और न ही संस्थापक। 
उन्हें वर्ष 2016 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।

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