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Ek Surgeon ka Chintan   

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Author V.N. Shrikhande
Features
  • ISBN : 9789386300683
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • V.N. Shrikhande
  • 9789386300683
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2017
  • 296
  • Hard Cover

Description

यह छोटे से शहर में रहनेवाले एक बच्चे की दिलचस्प और प्रेरणादायी कहानी है, जिसे पढ़ाई में औसत माना जाता था। उसे भाषण-दोष की समस्या थी, फिर भी वह भारत का एक जाना-माना सर्जन और प्रेरक वक्ता बन गया। 
यह आत्मचरित्र है डॉ. विनायक नागेश श्रीखंडे का जो अपने छात्रों के चहेते और उन हजारों मरीजों की श्रद्धा के पात्र हैं, जिनका कष्ट वे उपचार के मानवीय तरीके से हर लिया करते हैं।
इंग्लैंड में उनका अकादमिक प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट और शल्य कौशल इतना प्रभावशाली था कि 1960 में ही उन्हें विदेश में एक अच्छे कॅरियर का अवसर मिल गया था। हालाँकि, उनके पिता ने उनसे कहा कि वह भारत लौट आएँ और अपनी मातृभूमि के बीमार लोगों की सेवा करें। वे चाहते थे कि उनका पुत्र एक साधारण मनुष्य का असाधारण सर्जन बने। 
डॉ. श्रीखंडे को एक ऐसे युग में प्रशिक्षित किया गया, जब शल्य क्रिया एक सेवा थी, न कि एक उद्योग, जहाँ लाभ कमाने की मंशा होती है। उनका कॅरियर इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे व्यावसायिक उन्नति के साथ ही नैतिक मूल्यों, करुणा तथा जरूरतमंद और दबे-कुचले लोगों की देखभाल कर भी सफलता के शिखर तक पहुँचा जा सकता है। 
डॉ. श्रीखंडे द्वारा प्रशिक्षित अनेक छात्रों ने भारत तथा विदेश में नैतिक व्यावसायिक व्यक्तियों के रूप में अपनी पहचान बनाई, तथा उनसे जो कुछ भी सीखा, उसके लिए वे उनका आभार जताते हैं।

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अनुक्रम

लेखक की कलम से — 7

प्रस्तावना — 9

इस पुस्तक में — 13

मेरी बात — 17

आभार — 23

1. राष्ट्रपति का ऑपरेशन — 27

2. बचपन — 35

3. कॉलेज की शिक्षा — 51

4. सर्जरी में प्रशिक्षण — 60

5. इंग्लैंड के लिए प्रस्थान — 66

6. प्रतीक्षा का समय — 113

7. जिलों का भ्रमण — 129

8. वार्ड के चकर — 134

9. श्रीखंडे लीनिक — 146

10. हकलाहट पर विजय — 149

11. परिवर्तन का बिंदु — 157

12. यादगार प्रकरण — 160

13. डॉटर, आपको मुझे रोग-मुत करना होगा! — 180

14. सर्जरी में तनाव — 191

15. निपुणता और सर्जन — 201

16. मेरी परदेश यात्राएँ — 204

17. मुझमें मौजूद शिक्षक — 220

18. रोग अजनबियों को मेरे जीवन में लाए — 228

19. या मैं किस्मत पर विश्वास रखता हूँ? — 245

20. मृत्यु का सामना करने में साहस — 257

21. मेरा परिवार — 261

22. अंतिम मोड़ के साथ — 265

परिशिष्ट

सर्जन, शिक्षक, दार्शनिक जिन्होंने हमारे जीवन को स्पर्श किया — 270

The Author

V.N. Shrikhande

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