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Dhai Beegha Zameen   

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Author Mridula Sinha
Features
  • ISBN : 9789380183244
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Mridula Sinha
  • 9789380183244
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2013
  • 160
  • Hard Cover

Description

मनीष माँ के सुझाव पर आश्चर्य प्रकट कर गया।
“हाँ, मैं ठीक कहती हूँ।”
“क्या?” वह अनमना-सा बोला।
“यही कि गाँव चलो। कम-से-कम तब तक जब तक मंदी रहे। देखना, फिर दिन बहुरेंगे तुम्हारे भी, पैकेज के भी। जिंदगी तो बितानी होती है, बेटा। पैकेज के सहारे या पुश्तैनी जमीन के सहारे, क्या फर्क पड़ता है।”
मनीष ने हामी तो नहीं भरी थी, पर रात को माँ-बेटे दोनों को अच्छी नींद आई थी। सुबह का अखबार हाथ में लेकर मनीष गाँव जाने की योजना बना रहा था।
उसके एक मित्र द्वारा आत्महत्या करने की खबर फोटो के साथ छपी थी। वह भी पैकेजवाला नौजवान था, शादीशुदा।
माँ चाय ले आई थी। मनीष लिपट गया माँ से। बोला, “माँ, चलो, अभी गाँव चलते हैं।”
सुभद्रा बुदबुदाई थी, “कभी सुना था—जेवर संपत्ति का शृंगार और विपत्ति का आहार होता है। पर तुम्हारे लिए तो पुश्तैनी जमीन ही विपत्ति का आहार बन रही है। ढाई बीघा ही है तो क्या, तिनके का सहारा।”
—इसी संग्रह से
समाज जीवन की ज्वलंत समस्याओं से रू-ब-रू कराती ये कहानियाँ पाठक की अंत:चेतना को झकझोरती हैं। ये व्यक्ति, परिवार और समाज को तोड़ती नहीं, जोड़ती हैं। सर्वे भवन्तु सुखिन: का जीवन-मंत्र लिये, संवेदना और मर्म से भरपूर अत्यंत पठनीय कहानियाँ।

The Author

Mridula Sinha

मृदुला सिन्हा 
27 नवंबर, 1942 (विवाह पंचमी), छपरा गाँव (बिहार) के एक मध्यम परिवार में जन्म। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतान। बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम, रिक्शा पर सवारी, आठ वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी से यात्रा, पति के मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की सवारी। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। 1977 में पहली कहानी कादंबिनी' पत्रिका में छपी। तब से लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लिखती रहीं। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघरानों की भी। रधिया की कहानी है तो रजिया और मैरी की भी। लेखनी ने सीता, सावित्री, मंदोदरी के जीवन को खंगाला है, उनमें से आधुनिक बेटियों के लिए जीवन-संबल हूँढ़ा है तो जल, थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनियों की गाथाएँ भी हैं।
लोकसंस्कारों और लोकसाहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं।

 

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