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Deendayal Upadhayaya : Kritatva evam Vichar   

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Author Dr. Mahesh Chandra Sharma
Features
  • ISBN : 9789351862628
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Dr. Mahesh Chandra Sharma
  • 9789351862628
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2018
  • 424
  • Hard Cover

Description

दीनदयाल उपाध्याय का जीवन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भारतीय जनसंघ के साथ एकात्म था। भारतीय जनसंघ उनकी निर्णायक भूमिका व नेतृत्व के कारण भारतीय राजनीति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल बना। दीनदयाल उपाध्याय संविधानवाद को धर्म-राज्य के रूप में स्वीकार करते थे। वे मिश्रित किंवा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के आलोचक थे। भारत की एक महान् संस्कृति है। भारत की राष्ट्रीयता एकात्म है, उसकी पहचान मजहबी या राजनीतिक नहीं वरन् भू-सांस्कृतिक है। वे संघात्मक शासन के विरोधी तथा विकेंद्रीकृत एकात्म-शासन के पक्षधर थे। वे भारत की राजनीतिक व्यवस्था में पाश्चात्य अवधारणाओं के आरोपण के विरुद्ध थे, मौलिकता व भारतीयता के प्रतिपादक थे। वे राजनीति को जीवन का सर्वस्व माननेवाली विचारधारा को गलत मानते थे। दीनदयाल अर्थनीति के प्रखर अध्येता थे। वे उपभोगवादी (पूँजीवाद) एवं सरकारवादी (साम्यवाद) आर्थिक मानव की पाश्चात्य कल्पना को अमानवीय मानते थे। वे उत्पादन में वृद्धि, उपभोग में संयम तथा वितरण में समता के पक्षधर थे। उन्होंने ‘अदेव मातृका कृषि’ व ‘अपर मात्रिक उद्योग’ का विचार प्रस्तुत किया। उनके चिंतन का प्रतिफलन ‘एकात्म मानववाद’ के रूप में हुआ, जो एक संपूर्ण जीवन-दर्शन है। यह व्यक्ति एवं समाज को विभक्त नहीं करता; शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा के घनीभूत सुख की चिंता करता है तथा विराट् पुरुष के धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष—इन चतुर्पुरुषार्थों की संकलित साधना करता है। दीनदयाल उपाध्याय एकात्मता व पूरकता के लिए प्रकृति साक्षी रूप में प्रस्तुत करते थे। वे एकांगी अथवा खंड दृष्टि नहीं वरन् समग्रता के दृष्टिपथ के राही थे।

The Author

Dr. Mahesh Chandra Sharma


डॉ. महेश चंद्र शर्मा
जन्म : राजस्थान के चुरू कस्बे में 7 सितंबर, 1948 को। 
शिक्षा :  बी.ए.  ऑनर्स  (हिंदी),  एम.ए.  एवं 
पी-एच.डी. (राजनीति शास्त्र)।
कृतित्व : 1973 में प्राध्यापक की नौकरी छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। आपातकाल में अगस्त 1975 से अप्रैल 1977 तक जयपुर जेल में ‘मीसा’ बंदी रहे। सन् 1977 से 1983 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में उत्तरांचल के संगठन मंत्री, 1983 से 1986 तक राजस्थान विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि के लिए ‘दीनदयाल उपाध्याय का राजनैतिक जीवन चरित—कर्तृत्व व विचार सरणी’ विषय पर शोधकार्य। 1983 से साप्ताहिक ‘विश्ववार्ता’ व ‘अपना देश’ स्तंभ नियमित रूप से भारत के प्रमुख समाचार-पत्रों में लिखते रहे।
सन् 1986 में ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के सचिव बने। शोध पत्रिका ‘मंथन’ का संपादन। 1986 से वार्षिक ‘अखंड भारत स्मरणिका’ का संपादन। 1996 से 2002 तक राजस्थान से राज्यसभा सदस्य एवं सदन में भाजपा के मुख्य सचेतक रहे। 2002 से 2004 तक नेहरू युवा केंद्र के उपाध्यक्ष। 2006 से 2008 तक भाजपा राजस्थान के अध्यक्ष। 2008-2009 राजस्थान विकास एवं निवेश बोर्ड के अध्यक्ष। 1999 से एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष। पंद्रह खंडों में हिंदी व अंग्रेजी में प्रकाशित ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय संपूर्ण वाङ्मय’ के संपादक।

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