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Bharat Ki Vigyan Yatra   

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Author Jayant Vishnu Narlikar
Features
  • ISBN : 9789351862642
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Jayant Vishnu Narlikar
  • 9789351862642
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 206
  • Hard Cover

Description

भारत में भारतीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी से संबद्ध दो अलग-अलग विचारधाराएँ रही हैं। एक ओर यह समझ है कि भारत ने विज्ञान व प्रौद्योगिकी की राह पर देर से कदम रखा और अभी उसे काफी रास्ता तय करना है तथा दूसरी ओर यह मान्यता है कि हमारा अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और हम संसार का नेतृत्व करते थे।
प्रस्तुत पुस्तक भारत की विज्ञान यात्रा के मील के पत्थरों से हमारा परिचय कराती है और विज्ञान में भारत के उल्लेखीय योगदान से हमारा गौरव बढ़ाती है। इसमें विज्ञान के अलावा सामाजिक सोच से संबंधित मुद्दे भी वर्णित हैं। उच्च शिक्षा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा विज्ञान एवं धर्म के बीच होनेवाले संघर्ष या विवाद और जनता पर विज्ञान के अलग-अलग प्रभावों का भी वर्णन किया गया है। अंतिम अध्याय में चर्चा की गई है कि सांस्कृतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक उद्योग ने कहीं धार्मिक व दार्शनिक तलाश के क्षेत्र को तो प्रभावित नहीं किया है?
बहुत से अनुभवी व प्रख्यात विद्वानों द्वारा इन विषयों पर लिखा गया है; पर हिंदी में इस नवीन विषय पर लिखी पुस्तकें प्राय: नगण्य ही हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिक और स्थापित लेखक डॉ. जयंत विष्णु नारलीकर ने इस अभाव की पूर्ति करते हुए यह पुस्तक प्रस्तुत की है, जो अपने विषय की ठोस व सार्थक मीमांसा करते हुए पाठकों को ढेरों नई-नई जानकारियाँ देगी।

The Author

Jayant Vishnu Narlikar

जन्म : 19 जुलाई, 1938 को कोल्हापुर, महाराष्‍ट्र में।
शिक्षा : आरंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय के परिसर में प्राप्‍त की, जहाँ पिता विष्णु वासुदेव नारलीकर प्रोफेसर और गणित विभाग के प्रमुख थे। स्कूल और कॉलेज में उत्तम प्रदर्शन के बाद श्री नारलीकर ने सन् 1957 में बी.एस-सी. की डिग्री प्राप्‍त की। उन्होंने गणित में अपनी कैंब्रिज डिग्रियाँ प्राप्त कीं—बी.ए. (1960), पी-एच.डी. (1963), एम.ए. (1964) और एससी.डी. (1976); परंतु खगोलविद्या और खगोलभौतिकी में विशेषज्ञता प्राप्त की। सन् 1962 में ‘स्मिथ पुरस्कार’ और 1967 में ‘एडम्स पुरस्कार’ प्राप्त किए। बाद में किंग्ज कॉलेज के एक फेलो (1963-1972) और इंस्टीट्यूट ऑफ थियोरेटिकल एस्ट्रोनॉमी के संस्थापक स्टाफ सदस्य (1966-72) के रूप में सन् 1972 तक कैंब्रिज में रहे।
उन्हें कई राष्‍ट्रीय व अंतरराष्‍ट्रीय पुरस्कार और मानद डॉक्टरेट उपाधि मिली हैं। उन्हें ‘भटनागर पुरस्कार’ तथा ‘एम.पी. बिड़ला पुरस्कार’ भी प्राप्‍त हो चुका है। वर्ष 1965 में छब्बीस वर्ष की युवावस्था में ‘पद‍्मभूषण’ से तथा वर्ष 2004 में ‘पद‍्मविभूषण’ से अलंकृत किए गए।

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