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Author Rajendra Prasad
Features
  • ISBN : 9788173157486
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Rajendra Prasad
  • 9788173157486
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 328
  • Hard Cover

Description

इस आत्मकथा में हमें राजेंद्रबाबू के बाल्यकाल के बिहार के सामाजिक रीति-रिवाजों का, संकुचित प्रथाओं से होनेवाली हानियों का, उस समय के ग्राम-जीवन का, धार्मिक व्रतों, उत्सवों और त्योहारों का, उस जमाने के बच्चों के जीवन का और उस समय की शिक्षा की स्थिति का हू-ब-हू चित्र देखने को मिलता है। उस चित्र में सादगी और खानदानियत के साथ विनोद और खेद उत्पन्न करनेवाली परिस्थितियों का मिश्रण हुआ है। साथ ही आजकल हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भेदभाव की जो खाई बढ़ी हुई नजर आती है, इसके अभाव का और दोनों जातियों के बीच शुद्ध स्नेह का जो चित्र इस आत्मकथा में है, वह आँखों को ठंडक पहुँचानेवाला होते हुए भी दुर्भाग्य से आज लुप्त होता जा रहा है।
सन् 1905 में बंग-भंग के जमाने से ही राजेंद्रबाबू पर देशभक्ति का रंग चढ़ने लगा था। उसी समय से वह अपने जीवन में बराबर आगे ही बढ़ते गए। सन् 1917 में चंपारन की लड़ाई के समय उन्होंने गांधीजी के कदमों पर चलकर फकीरी धारण की। उसके बाद की उनकी आत्मकथा हमारे देश के पिछले तीस वर्षों के सार्वजनिक जीवन का इतिहास बन जाती है।
स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जीवन और तात्कालिक जीवन-मूल्यों एवं रीति-नीति का आईना प्रस्तुत करती है उनकी आत्मकथा।

The Author

Rajendra Prasad

गांधी युग के अग्रणी नेता देशरत्‍न राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सारण जिला के ग्राम जीरादेई में हुआ। आरंभिक शिक्षा जिला स्कूल छपरा तथा उच्च शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में। अत्यंत मेधावी एवं कुशाग्र-बुद्ध छात्र, एंट्रेंस से बी.ए. तक की परीक्षाओं में विश्‍वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्‍त, एम.एल. की परीक्षा में पुन: प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्‍त। 1911 में वकालत प्रारंभ, पहले कलकत्ता और फिर पटना में प्रैक्टिस।
छात्र-जीवन से ही सार्वजनिक एवं लोक-हित के कार्यों में गहरी दिलचस्पी। बिहारी छात्र सम्मेलन के संस्थापक। 1917-18 में गांधीजी के नेतृत्व में गोरों द्वारा सताए चंपारण के किसानों के लिए कार्य। 1920 में वकालत त्याग असहयोग आंदोलन में शा‌मिल। संपूर्ण जीवन राष्‍ट्र को समर्पित, कांग्रेस संगठन तथा स्वतंत्रता संग्राम के अग्रवर्ती नेता। तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष, अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषी मंत्री, संविधान सभा अध्यक्ष के रूप में संविधान-निमार्ण में अहम भूमका। 1950 से 1962 तक भारतीय गणराज्य के राष्‍ट्रपति। प्रखर चिंतक, विचारक तथा उच्च कोटि के लेखक एवं वक्‍ता। देश-विदेश में अनेक उपाधियों से सम्मानित, 13 मई, 1962 को ‘भारत-रत्‍न’ से अलंकृत।
सेवा-निवृत्ति के बाद पूर्व कर्मभूमि सदाकत आश्रम, पटना में निवास। जीवन के अंतिम समय तक देश एवं लोक-सेवा के पावन व्रत में तल्लीन।
स्मृतिशेष : 28 फरवरी, 1963।

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