Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Ahilyabai (Udaykiran)   

₹300

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Vrindavan Lal Verma
Features
  • ISBN : 8173151903
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vrindavan Lal Verma
  • 8173151903
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2015
  • 256
  • Hard Cover

Description

एक दरबारी ने दर्प के साथ कहा ‘एक पत्र में लिखा आया है कि बहुत से राजपूत राजा दक्ख‌िनियों के विरुद्ध हो गए हैं । हमारी निंदा करते हैं, लुटेरा कहते हैं! जिन मराठों ने हिंदुस्थान के चारों कोनों तक धर्म की ध्वजा फहराई; जिन मराठों की देवी ने उत्तर; में बदरीनाथ, केदारनाथ, कुरुक्षेत्र से लेकर मथुरा-वृंदावन, काशी, निजाम और टीपू राज्य रामेश्‍वर तक एवं द्वारिका और सोमनाथ मे लेकर जगन्नाथपुरी तक मंदिर, घाट, सड़कें और धर्मशाला बनवाईं और प्यासों के लिए प्याऊ रखवाईं जिन देवी ने तीर्थक्षेत्रों के मंदिरों में गंगाजल भिजवाने का प्रबंध किया, जिन देवी ने... '
अहिल्याबाई से न सहा गया । चेहरे पा रुद्रता फैल गई । ' बस, बस!' उन्होंने फटकारा ' मना कर दिया है कि मुझे देवी कभी मत कहो । मेरी चाटुकारी मत करो... ' फिर धीरे से बोलीं, ' सारे भारत की जनता एक है । द्वेष तो राजाओं और नवाबों में है । ये एक-दूसरे की निंदा की आड़ में एक-दूसरे के प्रदेश को बुरा बतलाते हैं । यह प्रदेश छोटा और बुरा है, हमारा प्रदेश बड़ा और अच्छा है; वे जंगली हैं, हम श्रेष्‍ठ हैं; इस भेदभाव का विष हम सबको किसी दिन नरक में धकेलेगा ।'
- इसी उपन्यास से
चारों ओर घोर अराजकता; शासन- व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार; प्रजाजन दीन-हीन अवस्था में; धर्म अंधविश्‍वासों, भय-त्रासों और रूढ़ियों की जकड़ में कसा हुआ; न्याय में न शक्‍त‌ि रही थी, न विश्‍वास । ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया-वह चिरस्मरणीय है । महारानी अहिल्याबाई के जीवन पर आधारित यह ऐतिहासिक उपन्यास बाबू वृंदावनलाल वर्मा की श्रेष्‍ठ कृति है ।

The Author

Vrindavan Lal Verma

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW