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Adarsh Balak Balikayen   

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Author Madan Gopal Sinhal
Features
  • ISBN : 9789380839424
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Madan Gopal Sinhal
  • 9789380839424
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2018
  • 128
  • Hard Cover
  • 200 Grams

Description

पूत के पैर पालने में ही दीख जाते हैं, किंतु उन पैरों को देखने की क्षमता सभी में नहीं होती। बहुधा पैरों को बड़प्पन मिलने पर ही पालने की खोज होती है और फिर पालने के छोटे पैर भी बड़े हो जाते हैं; किंतु भारतीय इतिहास में उन सपूतों की भी कमी नहीं, जो पालने में ही अपने बड़प्पन को प्रकट करके राष्‍ट्र-जीवन पर स्थायी छाप लगा गए।
हँसते शैशव से राष्‍ट्र की आराधना करनेवालों का यह चरित्र-चित्रण है। बड़ों के बचपन की अपेक्षा बचपन का बड़प्पन अधिक महत्त्व का है, क्योंकि वह समाज के उच्च स्तर एवं अंतर्भूत शक्‍त‌ि का द्योतक है। खेलने और खाने की उम्र में त्याग और बलिदान, वीरता और धीरता, सेवा एवं तपस्या के इतने महान् उदाहरण समाज के संस्कारी जीवन में मिल सकते हैं। जिन संस्कारों ने ये बालवीर उत्पन्न किए उनकी ओर ध्यान दिया गया तो आज भी भारत के बच्चों में शतमन्यु और अभिमन्यु जन्म लेंगे।
श्री मदनगोपाल सिंहलजी की प्रस्तुत पुस्तक बाल जीवन पर प्रभावी संस्कार डालने के लिए ही लिखी गई है। इन अनमोल हीरों के जौहरी को जिस दिन आज के समाज-जीवन में से हीरे खरीदकर उनके समकक्ष बिठाने का अवसर मिलेगा, उस दिन लेखक का प्रयास सफल होगा।

—दीनदयाल उपाध्याय

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अनुक्रमणिका

दो शब्द —5

भूमिका—7

1. लव-कुश—11

2. ध्रुव —16

3. प्रह्लाद—20

4. शतमन्यु—24

5. अभिमन्यु—28

6. स्कंधगुप्त—32

7. आल्हा-ऊदल—36

8. बादल—40

9. पुत्ता —44

10. हकीकतराय—47

11. रामसिंह—51

12. जोरावरसिंह-फतेहसिंह—55

13. शिवा—59

14. पृथ्वी सिंह—62

15. छत्रसाल—66

16. सूर्य और परमाल—70

17. सरदार बाई—75

18. ताजकुँवरि—80

19. वीरमती—84

20. तारा—88

21. रत्नवती—91

22. चंपा—95

23. कृष्णा—99

24. भगवती—103

25. विद्युल्लता—107

26. चंचल—110

27. लालबाई—115

28. मानबा—119

29. पद्मा देवी—123

30. मरीचि—126

 

The Author

Madan Gopal Sinhal

मेरठ (उ.प्र.) में 15 फरवरी, 1909 को एक व्यवसायी अग्रवाल परिवार में जन्म हुआ। बचपन में ही धार्मिक संस्कारों से पल्लवित हुए। क्षेत्र के जाने-माने संस्कृत विद्वान् पं. मोहनलाल अग्निहोत्री के चरणों में बैठकर संस्कृत भाषा व धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया। दंडी स्वामी श्री कृष्णवोधाश्रमजी महाराज तथा स्वामी करपात्रीजी के धार्मिक विचारों ने प्रभावित किया, वहीं विनायक दामोदर सावरकर की ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ तथा ‘हिंदुत्व’ पुस्तकें पढ़कर राष्‍ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प्रसार का संकल्प लिया।
गद्य तथा पद्य में लेखन शुरू किया। 1857, हमारे बलिदान, पुराणों की कथाएँ, धर्म और विज्ञान, बलिदान के पुतले, बालिकाएँ, बड़ों का बचपन, कौन बनोगे, क्रांतिकारी बालक जैसी लगभग साठ पुस्तकों की रचना की। ‘बड़ों का बचपन’ केंद्र सरकार से पुरस्कृत हुई।
‘आदेश’ (मासिक), ‘बालवीर’ पत्रिकाओं का वर्षों तक संपादन किया।
स्मृतिशेष : 18 दिसंबर, 1964।

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